गृहमंत्री बूटा सिंह से अशोक जी को बताया कि अयोध्या में हिन्दू जमीन का हक मांगे

गृहमंत्री बूटा सिंह से अशोक जी को बताया कि अयोध्या में हिन्दू जमीन का हक मांगे

गांधी नेहरू परिवार और अशोक जी सिंधल का परिवार प्रयाग में पड़ोसी थे। इसके चलते ही राजीव गांधी ने खुलवाया था अयोध्या का ताला

प्रयाग
राम जन्मभूमि मामले में एक और किस्सा है कि जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ताला खुलवाकर अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के राम मंदिर आंदोलन को आधार दिया, तो तत्कालीन गृह मंत्री सरदार बूटा सिंह ने शीला दीक्षित के जरिए अशोक जी सिंघल को यह संदेश भेजा कि हिन्दूओं के पक्ष में जितने भी मामले न्यायालय में चल रहे हैं उनमें केवल पूजा का अधिकार मांगा गया है। भूमि का अधिकार किसी ने भी नहीं मांगा है। इसके बाद ही इस मामले की दिशा बदली है।


किस्सा यह था कि 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद के सिविल जज के सामने राम जन्मभूमि में पूजा की अनुमति मांगी थी। 1961 में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने विवादित क्षेत्र का मालिकाना हक मस्जिद के पक्ष में मांगा था। इससे पहले निर्मोही अखाड़े ने 1959 में मंदिर का प्रबंधन अपने हाथ में लेने को लेकर केस दाखिल किया था। यानी हिंदू पक्ष की ओर से जो भी केस दायर हुआ था, उसमें कहीं भी जमीन के मालिकाना हक की मांग नहीं थी, बल्कि सिर्फ पूजा-पाठ और प्रबंधन को लेकर केस दाखिल हुए थे। जब राम मंदिर का आंदोलन तेजी पकड़ने लगा और राजीव गांधी ने ताला खुलवाया, तब सरकार के गृह मंत्री बूटा सिंह ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेता दिवंगत शीला दीक्षित के जरिए विहिप के अशोक सिंघल को संदेश भेजा था कि हिंदू पक्ष की ओर से दाखिल किसी केस में जमीन का मालिकाना हक नहीं मांगा गया है और ऐसे में हिन्दू पक्ष केस हार सकता है।


इसके अलावा इस मामले की एक विशेष बात और है कि इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में नेहरू परिवार और अशोक सिंघल के परिवार का घर आमने-सामने था और दोनों परिवारों में बेहद घनिष्ठता थी। इसी घनिष्ठता की वहज से राजीव ने परोक्ष रूप से जन्मभूमि का ताला खुलवाने में सहयोग किया। विहिप के उपाध्यक्ष और मंदिर आंदोलन को बेहद करीब से जानने वाले चंपत राय का कहना है कि शीला दीक्षित ही राजीव गांधी और अशोक सिंघल के बीच सेतु का काम कर रहीं थी। यहीं से तीसरी अहम याचिका दाखिल करने की पटकथा शुरू हुई। बूटा सिंह की सलाह काम कर गई और आंदोलन से जुड़े नेता देवकीनंदन अग्रवाल और कुछ लोगों को पटना भेजा गया। यहां कानून के जानकार लाल नारायण सिन्हा और 5-6 लोग जमा हुए और तीसरे मुकदमे की पटकथा बनी। इसमें रामलला विराजमान और स्थान श्री रामजन्मभूमि को कानूनी अस्तित्व देने की मांग की गई।

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