गोपाल सिंह विशारद को मौत के 33 साल बाद मिला पूजा का अधिकार
अयोध्या मामले के पहले याचिकाकर्ता थे विशारद, 1986 में हो चुका है निधन
अयोध्या
राम मंदिर के लिए सबसे पहले कानूनी लड़ाई शुरू करने वाले गोपाल सिहं विशारद को भी अंतत: न्याया मिल गया है लेकिन निर्णय के 33 वर्ष पहले उनका निधन हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली स्पेशल बेंच ने शनिवार को निर्णय सुना दिया है। कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ की जमीन को राम लला विराजमान के अधिकार में विधिवत दे दिया है।
कोर्ट के निर्णय से 1950 के पहले याची गोपाल सिंह विशारद को उनकी मौत के 33 साल बाद राम जन्मभूमि पर पूजा का अधिकार भी मिल गया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राम भक्त गोपाल सिंह विशारद को उनकी पूजा करने की मांग वाली याचिका के 69 साल बाद अधिकार मिला। हालांकि 33 साल पहले ही गोपाल सिंह का 1986 में निधन हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में लिखा गया है कि विवादित जमीन में याचीकर्ताओं के पूजा करने का अधिकार प्रशासन के अधीन है। शांति और व्यवस्था के मद्देनजर संबंधित अधिकारी पूजा करने का अधिकार प्रदान कर सकता है। कोर्ट के इस फैसले के पीछे प्रथम याचीकर्ता गोपाल सिंह के संदर्भ में ही है।
बता दे कि गोपाल सिंह ही वो पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 1950 में फैजाबाद सिविल कोर्ट में एक पिटीशन दायर करके विवादित ढांचे के अंदर पूजा करने के अधिकार की मांग की थी। गोपाल सिंह विशारद और एम. सिद्दीक दोनों ही राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के मेन याचीकर्ता थे। दोनों के निधन के बाद उनके वारिसों ने इस कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। अयोध्या की इस विधिक लड़ाई के पीछे 1949 की एक घटना है। कहा जाता है कि दिसंबर 1949 की एक रात कुछ लोगों द्वारा रात में विवादित ढांचे के अंदर राम-जानकी और लक्ष्मण की मूर्तियां रख दी गई थीं। जिसके बाद 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने अदालत में एक पिटीशन दायर करके भगवान राम की पूजा करने की मांग की थी। हालांकि उनके परिजनों ने निर्णय पर संतोष जताया है और कहा कि वे इस मामले में सदैव याद किए जाएंगे।
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