जस्टिस बोबड़े ने जस्टिस नजीर से पूछा, क्या मस्जिद में कमल के फूल होते हैं?
जस्टिस नजीर ने कहा मैने तो नहीं देखे
एकात्म भारत. दिल्ली
श्री रामजन्मभूमि मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस बोबड़े ने मुस्लिम पक्ष की वकील मीनाक्षी अरोड़ा से ढ़ाचे में मिल कमल के फूल के बारे में पूछा कि क्या मस्जिद में कमल के फूल होते हैं? इस पर अरोड़ा ने कहा कि हो सकते हैं? इस पर जस्टिस बोबड़े ने यहीं प्रश्न मामले की सुनवाई कर रहे साथी जज जस्टिस नजीर से पूछा तो उन्होंने कहा कि मैने तो नहीं देखे। इसके साथ ही मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने एएसआई की रिपोर्ट पर सवाल उठाने पर कोर्ट में माफी भी मांगी। अयोध्या मामले में ASI की रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि वहां पर हाथी और किसी जानवर की मूर्ति मिलने से ये नहीं कहा जा सकता कि वहां पर मंदिर ही होगा। क्योंकि उस समय में वो खिलौना भी हो सकता है, जिसको किसी धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता।
अरोड़ा ने कहा कि वहां पर 383 आर्किटेक्चर अवशेष मिले थे, जिसमेँ से 40 को छोड़कर कोई भी मंदिर का हिस्सा नहीं कहा जा सकता। शिलाओं पर बने कमल के निशान पर अरोड़ा ने कहा कि ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वह मंदिर ही है क्योंकि वह जैन, मुस्लिम बौद्ध और हिंदू धर्मों के भी पवित्र चिन्ह हो सकते है।
इस पर जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि क्या मस्जिदों में भी कमल के निशान होते हैं? इस सवाल का मीनाक्षी अरोड़ा ने सीधा जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा कि हो सकता है। इसके बाद जस्टिस बोबड़े ने अपने साथ बेंच में बैठे जज जस्टिस नजीर से इसका जवाब जानना चाहा कि क्या मस्जिदों में भी कमल के निशान होते हैं। जस्टिस नजीर ने कहा कि मेरी जानकारी में ऐसा नहीं है. मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि कमल के चित्र को हिंदू, मुस्लिम, बुद्ध सभी इस्तेमाल करते रहे है. इसका इस्तेमाल मुस्लिम और इस्लामिक आर्किटेक्ट में होता रहा है।
राम जन्मभूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट में एएसआई की रिपोर्ट पर सवाल उठाने के बाद गुरुवार को मुस्लिम पक्ष अपने रुख से पलट गया और ऐसा करने पर माफी मांग ली। मामले की सुनवाई कर रही 5 जजों की संवैधानिक बेंच के समक्ष मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट पर सवाल उठाए जाने को लेकर माफी मांगी। धवन ने कहा कि वह एएसआई रिपोर्ट की प्रमाणिकता पर कोई सवाल नहीं करना चाहते। मुस्लिम पक्ष की ओर से दलीलें दे रहे धवन ने कहा, ‘यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि हर पेज पर हस्ताक्षर हों। रिपोर्ट की ऑथरशिप और उसके सारांश पर सवाल खड़े किए जाने की जरूरत नहीं है। यदि हमने बेंच का समय नष्ट किया हो तो हम इसके लिए माफी मांगते हैं।’
इसके साथ ही बेंच ने कहा कि हिंदू और मुस्लिम पक्ष को तय समय में ही अपनी दलीलें देनी होंगी क्योंकि 18 अक्टूबर के बाद एक दिन का भी वक्त नहीं दिया जाएगा। चीफ जस्टिस गोगोई ने कहा, ‘18 अक्टूबर के बाद एक भी दिन का अतिरिक्त समय नहीं मिलेगा। यदि हम 4 सप्ताह में फैसला देते हैं तो फिर वक्त देना मुश्किल होगा।’ कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से कहा कि वे एएसआई रिपोर्ट पर अपने सवालों को एक ही दिन में निपटा लें। अदालत ने कहा कि अक्टूबर में कई दिन अवकाश हैं और हिंदू पक्ष के सिर्फ एक ही वकील को प्रत्युत्तर के लिए मौका दिया जाएगा।
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