इसरो की भारत के दिल में सीधी लैंडिंग
मन का सितार बन कर झनझनाया है
चांद के साथ मेरे कमरे में उतर आया है…
स्मृति आदित्य की इस कविता में यदि चांद के स्थान पर इसरो और कमरे के स्थान पर दिल को रख दिया जाए तो इसका अर्थ और भी बढ़ जाएगा कम नहीं होगा। विक्रम भले ही खो गया हो लेकिन इसरो को देश के दिल का पता मिल गया है। फर्जी सितारों की दुनिया में इसरो प्रमुख के. सिवन दैदीप्यमान तारें हैं। उन्होंने और उनकी टीम ने गर्व जैसे शब्दों को बहुत छोटा कर दिया है। उन्होंने बचपन से ही विपरित परिस्थितियों को जिया है। उनका और उनके साथियों का जीवट चांद से बहुत बड़ा है। संभवत: देश के प्रधानमंत्री को सामने देख वे भावुक हो गए अन्यथा वे अपनी टीम के सामने कभी निराश नहीं होते। पूरे घटनाक्रम का सकारात्मक पक्ष यह है कि पहलीबार घर और लैबोरेटरी के बीच अपनी जीवन काट देने वाले वैज्ञानिकों के बारे में ये देश इतना जान रहा है और इतनी बातें कर रहा है।कॉमर्स पढ़कर एमबीए होने की भीड़ बढ़ाने वाले देश में विज्ञान और वैज्ञानिक पहली बार घर-घर चर्चा में आ रहे हैं। इसे चंद्रयान और इसरो का योगदान माना जाना चाहिए। इसरो की यात्रा भी कम संघर्षपूर्ण नहीं रही है। वो उस देश की स्पेस रिसर्च एजेंसी है जहां स्वतंत्रता के बाद नागरिकों को आधारभूत आवश्यकताओं यानी रोटी, कपड़ा और मकान की समस्याएं कम नहीं थी। इन सब में विज्ञान सबसे अंत में था। कौन भूल सकता है कि फिर भी इसरो न केवल सैटेलाइट बनाता रहा बल्कि उन्हें बैलगाड़ी पर रखकर लांचिंग के लिए ले जाता रहा। लेकिन इसरो और उसके वैज्ञानिकों ने कभी शिकायत नहीं की। वे चुपचाप अपने काम में लगे रहे। वे मंगल और चांद पर पहले भी पंंहुच चुके हैं और फिर जाएंगे इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है। विज्ञान में असफलता सफल होने की पहली शर्त होती है। एक प्रयोग अपने सफल होने के पहले कई बार असफल होता है। यह असफलता ही उसे सफल बनाने में महत्वपूर्ण होती है।
लेखक गिरीश शर्मा पत्रकार एवं राष्ट्रवादी कार्यकर्ता हैं।
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