‘मेरे भाइयों के बलिदान को मेरी मां ने 25 साल तक जिया’
अयोध्या पर निर्णय आने के बाद राम और शरद कोठारी की बहन पूर्णिमा ने कहा
कोलकाता
राम और शरद कोठारी राम मंदिर आंदोलन के बलिदानी हैं। उनकी बहन पूर्णिमा ने अयोध्या के निर्णय के बाद अपने दोनों भाईयों को याद किया और कहा कि हमारी 25 साल तक उस बलिदान की जीती रहीं। पिता के जाने के बाद तो ये बलिदान ही उनका आसरा था। अपने दोनों भाईयों को याद करते हुए पूर्णिमा ने बताया, ‘मैं मानती हूं कि जब किसी परिवार से कोई बलिदान होता है, तो उस बलिदान को पूरा परिवार जीता है। मैंने अपनी आंखों से यही देखा है कि मेरे माता-पिता ने अपने बच्चों के बलिदान को अपनी सारी उम्र जिया। मेरी मां जब गुजरी, तो मेरे भाइयों को गुजरे 25 साल हो गए थे, लेकिन वह लगातार उस बलिदान को जी रही थीं।’
पिता का 2002 में और मां का 2016 में देहांत हुआ। कोठारी बंधुओं का परिवार मूल रूप से बीकानेर का रहने वाला था और दोनों भाइयों को बीकानेर से बहुत लगाव था। पूर्णिमा ने बताया, ‘पिता जी ने बीकानेर में सॉफ्ट ड्रिंक की छोटी फैक्टरी खोली थी। दोनों भाई आपस में बहस करते थे कि तुम कलकत्ता रहना, मैं बीकानेर जाऊंगा। दोनों को बीकानेर बहुत पसंद था। दोनों बीकानेर में जाकर रहना चाहते थे।’ व्यावसायी समाज से संबंध रखने के कारण दोनों भाइयों को नौकरी करने की बहुत चाह नहीं थी और राम कोठारी ने तो कोलकाता में पिता के लोहे के कारोबार में हाथ बंटाना भी शुरू कर दिया था। पूर्णिमा ने बताया, ‘ये तय था कि वह बिजनेस ही करेंगे।’ उन्होंने बताया कि दोनों भाई बहुत छोटी उम्र से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े गए थे और जिस समय अयोध्या में उनकी मौत हुई उस समय राम 22 साल के और शरद 20 साल के थे। पूर्णिमा शरद से एक साल छोटी हैं।
यदि वे आज जिंदा होते तो बीकानेर में अपना कारोबार कर रहे होते या फिर कोलकाता में पिता का व्यवसाय संभाल रहे होते। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। पूर्णिमा कोठारी अयोध्या पर उच्चतम न्यायालय के फैसले से काफी खुश हैं। मगर वह अपना दुख छिपाना भी नहीं चाहतीं। कोलकाता से ‘भाषा’ के साथ फोन पर बातचीत में पूर्णिमा ने कहा, ‘मैं आज भी अपने भाइयों के उस बलिदान को जी रही हूं।’ कोलकाता निवासी राम कोठारी और शरद कोठारी ने 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में तत्कालीन बाबरी मस्जिद के ढांचे पर कथित तौर पर भगवा झंडा फहराया था। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे। बाबरी मस्जिद पर भगवा झंड़ा फहराने की जो तस्वीरें मीडिया में आईं, उनमें राम कोठारी गुंबद के सबसे ऊपर हाथ में भगवा झंडा थामे खड़े थे और शरद कोठारी उनके बगल में खड़े थे। इसके बाद दो नवंबर 1990 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन कारसेवक एक बार फिर बाबरी मस्जिद की ओर कूच करने के लिए हनुमान गढ़ी मंदिर के पास जमा हुए। पुलिस ने उन्हें काबू में करने के लिए गोलियां चलाई। प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक हनुमान गढ़ी के पास हुई इस गोलीबारी में 16 लोग मारे गए, जिसमें राम और शरद कोठारी भी शामिल थे।
उस समय कारसेवा के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अधिकारियों ने यह नियम बनाया था कि एक परिवार से एक व्यक्ति ही कारसेवा में जाएगा। पूर्णिमा बताती हैं, ‘राम ने कहा कि राम के काम में राम तो जाएगा। छोटे ने कहा कि राम जहां जाएगा, वहां लक्ष्मण भी जाएगा। ऐसा करके इन्होंने अधिकारियों और घर वालों दोनों को निरुत्तर कर दिया।’ उन दोनों की मौत के बाद उनकी अंतिम इच्छा यानी राम मंदिर आंदोलन में उनके माता-पिता भी शामिल हो गए। पूर्णिमा ने बताया, ‘मेरे मां-पिता जी हर कारसेवा में अयोध्या पहुंचते थे। छह दिसंबर को जिस दिन ढांचा गिराया गया था, उस दिन भी वहां मेरे मां-पिता कारसेवा के लिए मौजूद थे।’राम मंदिर आंदोलन इन दोनों भाईयों को याद किए बिना अधूरा है।
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