महिलाओं का सिंदूर धुला देखा तो पता चला उनके पति ईसाई हो गए
मामला झारखंड के गांव का, धर्मांतरण से ग्रामीण आक्रोशित
रांची
ओरमांझी प्रखंड के गगारी पंचायत के छप्पर टोली गांव में जब ग्रामीणों ने कुछ महिलाओं का सिंदूर धुला देखा तो उन्होंने इसका कारण पता किया। पूछताछ में सामने आया कि महिलाओं के प्रति इसाई हो गए हैं इसके चलते उन्होंने अपनी पत्नियों का सिंदूर धुलवा दिया है। इन युवकों ने अपनी पत्नियों से कहा कि ईसाई धर्म में सिंदूर नहीं लगाते हैं। मामला गांव के 10 युवकों का है। इसके बाद गांव में आक्रोश फैल गया और गांव की समिति ने युवकों को एक माह के भीतर हिंदू धर्म या सरना में लौटने का विकल्प दिया है अन्यथा इन पर आगेे की कार्रवाई की जाएगी।
पूरे गांव में इस धर्मांतरण की चर्चा हैं और वे इन युवकों के इस निर्णय से आहत हैं। धर्मांतरण करने वाले सभी युवा विवाहित नहीं हैं लेकिन अधिकांश का विवाह हो चुका है और उनके द्वारा धर्मांतरण करने से उनके ससुराल वाले भी आहत हैं। उनका कहना है कि हमने इन युवकों को हिन्दू मानकर अपनी बेटियां इन्हें दी थीं।
गांव में इस धर्मातरण की जानकारी मिलनै के बाद समाज की बैठक बुलाई गई । इनमें से कोई युवक इस बैठक में नहीं आया। इनकी अनुपस्थिति में इन्हें एक माह में यह तय करने को कहा गया है कि ये वापस सरना और हिन्दू धर्म में लौटने को तैयार हैं या नहीं। इनका जवाब आने के बाद इन पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
इन्होंने बदला है धर्म
गगारी पंचायत के दो अलग-अलग टोलों में रहने वाले वीरेंद्र बेदिया, दिनेश बेदिया, सूरज बेदिया, गंगा बेदिया, राजेश बेदिया, मजेंद्र नायक, भुवनेश्वर बेदिया, झुमरी देवी, जितेंद्र बेदिया और श्याम नायक सरना-हिन्दू धर्म का त्याग कर ईसाई धर्म के रीति-रिवाज का पालन कर रहे हैं। कुछ लोगों ने दावा किया है कि धर्म बदलने के फैसले से परिवार के दूसरे सदस्य भी साथ हैं। हालांकि ज्यादातर इसके खिलाफ हैं।
जिस भाई को निजी स्कूल में पढ़ाया वो ईसाई बन गया
धनेश्वर बेदिया न सिर्फ परेशान हैं बल्कि आहत भी हैं। उनके अविवाहित छोटे भाई दिनेश बेदिया ने ईसाई धर्म अपना लिया है। बड़े भाई धनेश्वर अपनी पीड़ा बताते हुए वे भावुक हो जाते हैं। अपने आंसू रोक नहीं पाते। धनेश्वर कहते हैं कि जिंदगी गरीबी में बीता है। खुद सरकारी स्कूल में पढ़ाई की, वहीं बहुत मेहनत और संघर्ष से छोटा भाई को अच्छे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया। आज दो कमरे का मकान है। कभी अपने छोटे भाई को अलग नहीं समझा।
आज वह अपना धर्म अलग कर लिया। वो हमको बांट दिया। अभी भी उससे कहता हूं कि पूरी संपत्ति रख लो, मेरे लिए मे मां-बाप से बढ़कर कोई नहीं। जो उनका धर्म है वही हमारा धर्म है। आज मेरा भाई हमसे रिश्ता तोड़ लेना चाहता है। उसको दूसरा धर्म प्यारा है, हम उसके लिए प्यारे नहीं हैं, तभी तो वो छोड़कर दूसरे रास्ते पर जा रहा है। धनेश्वर जैसी कहानी लगभग हर परिवार की है।
पूरी तैयारी से हुआ है धर्मांतरण
10 युवाओं के धर्म परिवतर्न पर गगारी निवासी जितेंद्र बेदिया खुले तौर पर कहते हैं कि यह कहना गलत होगा कि इन युवाओं को बिना प्रलोभन के अपना धर्म छोड़ रहे हैं। वे उन युवाओं की रहन-सहन और बातों पर कई सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं कि इन लोगों ने कब और कहां चर्च देखा क्योंकि गांव में आसपास तो चर्च नहीं है। आज ये लोग हमारे धर्म की बुराई भी कर रहे हैं। ये युवा कहते हैं कि भगवान राम का जन्म नहीं हुआ। ये बातें इन्हें कौन सिखा पढ़ा रहा है?
यहां धर्म परिवर्तन करने वाले लोग मेरे से ज्यादा शिक्षित नहीं हैं, लेकिन आज इनलोगों को संविधान के अनुच्छेद भी पता चल गए हैं ये सब इन्हें किसने बताया? इन लोगों को सिखाया पढ़ाया गया है और कहा गया है कि आप संविधान केअनुच्छेद की बातें करिए लोग बुड़बक बनेंगे।
झाड़-फूंक की आड़ में धर्मांतरण
यहां के ग्रामीण धर्मांतरण के लिए दो युवकों माजेंद्र नायक और श्याम नायक को जिम्मेदार बताते हैं। उनका कहना है कि यही भोले भाले सरना आदिवासी को बहला-फुसलाकर प्रलोभन देकर ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। एक अन्य ग्रामीण सीता देवी बताती हैं कि कुछ साल पहले पति की तबियत खराब हुई थी। तब कुछ लोगों ने मदद की थी और कहा था कि हमारा धर्म और रीति रिवाज अपनाने का ऑफर किया था।
ग्रामीण बताते हैं कि ये दोनों गांव में परेशान लोगों को झाड़-फूंक के नाम पर रांची ले जाते हैं और वहां उन्हें चर्च में ले जाकर झाड़-फूंक कराते हैं साथ ही कुछ मदद भी दिला देते हैं। इस तरह से ये धर्मांतरण के लिए उन्हें तैयार करते हैं।
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