अयोध्या पहुंचकर भावुक हो गईं कोठारी बंधुओं की बहन पूर्णिमा कोठारी
कहा कि हर वर्ष मंदिर निर्माण के लिए तराशे पत्थरों में अपने भाइयों की छाया ढूंढने आती हूं
अयोध्या
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद अयोध्या पहुंची कोठारी बंधुओं की बहन राम मंदिर कार्यशाला में रखे मंदिर के पत्थरों को देखकर भावुक हो गईं। उन्होंने कहा कि मुझे इन पत्थरों में अपने भाई दिखाई देते हैं। उन्होंने कहा कि आज मेरे भाईयों का बलिदान सार्थक हुआ है।
अयोध्या में राममंदिर के निर्माण में कारसेवकों के बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है, इन्हीं बलिदानियों में कोठारी बंधुओं के बलिदान को भी कभी भुलाया नहीं जा सकता, जिन्हें युवा अवस्था में ही अयोध्या में कारसेवा के दौरान गोली मार दी गई थी।
अब फैसले के बाद अयोध्या पहुंचीं कोठारी बंधुओं की बहन पूर्णिमा कोठारी ने रामलला के दर्शन किए और उसके बाद राम मंदिर निर्माण कार्यशाला पहुंचीं, जहां पत्थरों को छूकर मंदिर निर्माण की अनुभूति की। इसी दौरान पूर्णिमा कोठारी ने अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कहा कि हर वर्ष इन पत्थरों में अपने भाइयों की छाया ढूंढने आती हूं और आज अहसास हुआ कि अब हमारे भाइयों का बलिदान सार्थक हुआ।
निर्णय के बाद अयोध्या पहुंचीं कोठारी बंधुओं की बहन पूर्णिमा कोठारी ने रामलला के दर्शन किए और उसके बाद राम मंदिर निर्माण कार्यशाला पहुंचीं, जहां पत्थरों को छूकर मंदिर निर्माण की अनुभूति की। इसी दौरान पूर्णिमा कोठारी ने अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कहा कि हर वर्ष इन पत्थरों में अपने भाइयों की छाया ढूंढने आती हूं और आज अहसास हुआ कि अब हमारे भाइयों का बलिदान सार्थक हुआ। मंदिर कार्यशाला में पूर्णिमा कोठारी ने बात करते हुए बताया कि आज मेरे भाइयों का बलिदान सार्थक हो गया है। अगर मुझे पहले से ही पता होता कि आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना है तो मैं अयोध्या पहुंचकर रामलला के दरबार में होती। मैं अयोध्या में अपने भाइयों के शहीद होने के बाद से ही प्रत्येक वर्ष राम मंदिर के लिए अयोध्या आती रही हूं और आज मनोकामना पूर्ण हुई। न कार्यशाला में रखे पत्थरों को देखकर अनुभूति होती है कि मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो गया है। उन्होंने बताया कि राम मंदिर के लिए पिछले 491 वर्षों से रामभक्त अपना बलिदान दे रहे हैं और आज उस संघर्ष को विराम मिला है।
बहुत अच्छा फैसला सुप्रीम कोर्ट के द्वारा मिला है। उन्होंने सरकार से मांग करते हुए कहा कि इस संघर्ष गाथा में आज तक जितने भी रामभक्तों के बलिदान हुए हैं, उनकी स्मृति में एक संग्रहालय में स्मारक बने, ताकि वह आने वाली पीढ़ियों में भी याद किए जाएं। 29 वर्ष पूर्व जो घटना हुई शायद आज की पीढ़ी उसे नहीं जानती लेकिन आज जब फैसला आया तो इससे जरूर नई पीढ़ी के लोगों को जानने की इच्छा होगी और जब भी मंदिर का निर्माण होगा नई पीढ़ी दर्शन करना पसंद करेगी तो ऐसे में यदि संग्रहालय बनता है तो वह स्मारक इन नई पीढ़ियों को भी उन बलिदानियों की याद दिलाता रहेगा, इसलिए इसके निर्माण को लेकर भी सरकार को विचार करना चाहिए। बहन पूर्णिमा ने इच्छा प्रकट की कि जिस कार्य के लिए हमारे भाइयों ने अपना बलिदान दिया है यदि वह राम मंदिर निर्माण का कार्य मैं अपने हाथों से कर सकूं तो यह मेरा सौभाग्य होगा।
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