हिन्दू महासभा ने मस्जिद को 5 एकड़ भूमि के निर्णय को चुनौती दी
40 “मानवाधिकार” कार्यकर्ता भी निर्णय के विरुद्ध कोर्ट गए, प्रशांत भूषण ने लगाई पुर्नविचार याचिका
नई दिल्ली
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के वादियों में शामिल अखिल भारत हिंदू महासभा ने अयोध्या में एक मस्जिद के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन आवंटित करने के लिए दिये गए निर्देश के खिलाफ सोमवार को उच्चतम न्यायालय का रुख किया। इस तरह, शीर्ष न्यायालय के नौ नवंबर के फैसले पर ‘सीमित पुनर्विचार की मांग करने वाला महासभा पहला हिंदू संगठन है। उसने विवादित ढांचे को मस्जिद घोषित करने वाले निष्कर्षों को हटाने की भी मांग की है।
महासभा ने अपनी पुनर्विचार याचिका में कहा है कि शीर्ष न्यायालय ने जिन निष्कर्षों को दर्ज किया, वे सही नहीं हैं और वे साक्ष्य एवं रिकार्ड के विरूद्ध हैं। इनमें (निष्कर्षों में) विवादित ढांचे को मस्जिद बताया गया है। महासभा की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका में कहा गया है, ‘’ मुसलमान यह साबित करने में नाकाम रहें कि विवादित निर्माण मस्जिद था, वहीं दूसरी ओर हिंदुओं ने प्रमाणित कर दिया कि विवादित स्थल पर भगवान राम की पूजा की जाती रही है, इसलिए रिकार्ड में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो यह घोषित करे कि विवादित ढांचा मस्जिद था।
याचिका में कहा गया है, ‘’…मुसलमानों द्वारा अतीत में की गई किसी गलती के लिए मुआवजा नहीं दिया जा सकता। याचिका में कहा गया है कि न्यायालय ने हिंदुओं को इसके लिए नहीं बुलाया कि वे 1949 और 1992 में की गई कार्रवाई के लिए अपनी स्थिति स्पष्ट करें तथा उनके खिलाफ दिए गये निर्देश को रद्द किया जा सकता है।
इसमें कहा गया है, ‘’समानता और कानून का शासन अवश्य होना चाहिए तथा अतीत में हिंदुओं के अधिकारों में की गई कटौती में सुधार किया जाना चाहिए ताकि वे नये संवैधानिक युग में सांस ले सकें।
महासभा के अलावा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं सहित 40 लोगों ने संयुक्त रूप से शीर्ष न्यायालय का रुख कर अयोध्या मामले में उसके फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया है। उन्होंने दावा किया कि फैसले में तथ्यात्मक एवं कानूनी त्रुटियां हैं। इन लोगों में इतिहासकार इरफान हबीब, अर्थशास्त्री एवं राजनीतिक विश्लेषक प्रभात पटनायक, मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर, नंदिनी सुंदर और जॉन दयाल शामिल हैं। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि वे न्यायलय के फैसले से बहुत आहत हैं। उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने पुनर्विचार याचिका दायर की है।
तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने पिछले साल 14 मार्च को यह स्पष्ट कर दिया था कि सिर्फ मूल मुकदमे के पक्षकारों को ही मामले में अपनी दलीलें पेश करने की इजाजत होगी और इस विषय में कुछ कार्यकर्ताओं को हस्तक्षेप करने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था।
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