मदद देने गए लोगों को मदद देकर लौटाया गड़िया लोहारों ने
गरीबों के लिए 200 पैकेट राहत सामग्री की राशि दी और कहा महाराणा प्रताप के वचन से बंधे हैं, नहीं ले सकते मदद
भीलवाड़ा.
जहां भीलवाड़ा कोरोना के विरुद्ध लड़ाई को जीतकर वैसै ही चर्चा में हैं और अब इसके बाद यहां के गड़िया लोहार समाज ने जो काम किया है। वो दुनिया भर के लिए एक उदाहरण बनेगा। कोरोना की महामारी को देखते हुए भीलवाड़ा के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यकर्ता राहत सामग्री का वितरण कर रहे हैं। इसी क्रम में वे लोग वहां गड़िया लोहार समाज की बस्ती में पहुंचे । लेकिन वहां के निवासियों ने मदद लेने से मना कर दिया और कहा कि इसकी आवश्यकता दिहाड़ी श्रमिकों को है। यह कहते हुए उन्होंने विनम्रता पूर्वक राहत सामग्री लेने से इनकार कर दिया। इतना ही नहीं समाज के लोगों ने 200 पैकेट राहत सामग्री का मूल्य जो कि 51 हजार रुपए है, एकत्रित कर स्वयंसेवकों को दिए। इस राशि से अब स्वयंसेवक राहत सामग्री का वितरण गरीब बस्तियों में करेंगे।
राहत सामग्री देने के लिए संघ के अलावा अन्य संस्थाओं के कार्यकर्ता भी इन लोगों के पास गए थे लेकिन इन्होंने किसी से भी राहत सामग्री लेने से इनकार कर दिया। इन्होनें कहा कि अभी इस सामग्री का आवश्यकता दिहाड़ी मजदूरों को है। हम वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के वंशज हैं, बगैर मेहनत के हम कुछ भी नहीं लेते। जिस प्रकार सन् 1576 में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने संकट के समय यह प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मेवाड़ स्वतंत्र नहीं हो जाता, तब तक मैं महलों में नहीं रहूंगा, बर्तनों में नहीं खाऊंगा और पलंग पर नहीं सोऊंगा। उसी समय से हम लोगों ने भी इस प्रतिज्ञा का निर्वहन करना आरंभ किया।
प्रण का पालन करते हुए गाड़िया लोहार
तब से आज तक अपने प्रण का पालन करते हुए गड़िया लोहार चितौड़ दुर्ग पर नहीं चढ़े हैं। मेवाड़ भी आजाद हो गया और देश भी, लेकिन ये गाड़िया लोहार आज भी अपने उसी प्रण पर अडिग हैं। ये न तो अपनी मातृभूमि पर लौटे और न ही अपने घर बनाए। वे तभी से घुमक्कड़ जिंदगी जी रहे हैं न उन्होंने कभी सरकार से कोई मांग न सरकार के खिलाफ कोई आंदोलन किया। गड़िया लोहार देश के कई गांव-कस्बों मे भी सड़क के किनारे इनकी अस्थायी बस्ती बसाकर रहते हैं ।मिट्टी के पांच-छह फीट ऊंचे कच्चे मकान, दो-चार मवेशी, एक बैल गाड़ी और कुछ लोहा-लक्कड़ यही इनकी संपत्ति है। सर्दी हो या गर्मी या फिर बारिश, यहीं पर इनका डेरा रहता है। शादी-ब्याह हो या कोई पर्व-त्यौहार सब कुछ यहीं सम्पन्न होता है। लोहे के औजार बनाकर जो कुछ मिलता है, उससे अपना और परिवार का पेट पालते हैं.
इसके बाद स्वयंसेवकों ने इनके द्वारा दी गई राशि से 200 पैकेट राशन के बनाए और इसके वितरण के लिए बस्ती में ही एक कार्यक्रम का आयोजन किया। इसमें पूज्य महामंडलेश्वर हंसराम उदासीन ने गड़िया लोहार समाजजनों का शाल और माला पहनकर अभिनन्दन किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महानगर संघचालक चांदमल सोमानी ने उन्हें श्रीनाथजी का ऊपरना पहना कर स्वागत किया।
पूज्य महामंडलेश्वर ने कहा की मेवाड़ की धरा पर आज पुनः इतिहास रचा गया है। तभी तो कहावत है , माई एहड़ा पूत जण, जेड़ा राणा प्रताप। कार्यक्रम में गाडिया लोहार समाज से कालू जी, सोहन जी, राजू जी, भंवर जी, कब्बू जी सहित समाज के प्रमुख लोग उपस्थित थे।
कार्यक्रम में दिव्यांग मां, जिनकी दोनों आंखों में रोशनी नहीं थी, वह भी आई और उन्होंने कहा कि देश में संकट का समय है और ऐसे समय में हमें सब की मदद करनी चाहिए। हमने कुछ नहीं किया, यह सब एकलिंग नाथ जी ने करवाया है। तत्पश्चात गाडिया लोहार समाज के बंधुओं के साथ राशन सामग्री शहर की विभिन्न कच्ची बस्तियों में वितरित की गई।
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