एक टीवी सीरियल जिसने एक सेक्युलर देश को मुस्लिम ‌कट्‌टरपंथी बना दिया

एक टीवी सीरियल जिसने एक सेक्युलर देश को मुस्लिम ‌कट्‌टरपंथी बना दिया

“मस्जिदें हमारी छावनी हैं, गुंबदें हमारी रक्षा कवच, मीनारें हमारी तलवार और इस्लाम के अनुयायी हमारे सैनिक हैं। “

ये उस नेता का चुनावी भाषण है जिसकी पत्नी के साथ बॉलीवुड कलाकार आमिर खान शान से बैठे थे। यानी तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन का। इसलिए ही सवाल आमिर खान पर उठे हैं। अर्दोआन एक ऐसा आदमी है जिसकी पत्नी हिजाब पहनती है जबकि तुर्की में हिजाब प्रतिबंधित था लेकिन आप यहीं कोई राय कायम करने जा रहे हैं तो रूकिए जरा अर्दोआन के ये विचार भी सुनिए  

”महिलाओं की यह ज़िम्मेदारी है कि वो तुर्की की आबादी को दुरुस्त रखें। हमें अपने वंशजों की संख्या बढ़ाने की ज़रूरत है। लोग आबादी कम करने और परिवार नियोजन की बात करते हैं लेकिन मुस्लिम परिवार इसे स्वीकार नहीं कर सकता है। हमारे अल्लाह और पैग़म्बर ने यही कहा था और हम लोग इसी रास्ते पर चलेंगे।”

2017 में भी आमिर खान टर्की के राष्ट्रपति से मिले थे।

इस तरह के विचारों वाले आदमी को आप जाहिल से ज्यादा कुछ नहीं कह सकते हैं और आप ही सोचिए कि इस आदमी से मिलने दूसरा आदमी मुंबई से गया उसे क्या कहा जाए?

इस आदमी की एक और बानगी देखिए। अर्दोआन ने न्यूयॉर्क टाइम्स के दिए इंटरव्यू में कहा था कि

 ‘‘मैं कुछ भी होने से पहले एक मुसलमान हूं। एक मुसलमान के तौर पर मैं अपने मज़हब का पालन करता हूं। अल्लाह के प्रति मेरी ज़िम्मेदारी है, उसी के कारण मैं हूं। मैं कोशिश करता हूं कि उस ज़िम्मेदारी को पूरा कर सकूं।”

अतातुर्क ने तुर्की को बनाया था धर्मनिरपेक्ष

कमाल अतातुर्क को आधुनिक तुर्की का निर्माता माना जाता है। उन्होंने ही हदिया सोफिया को म्यूजियम बनाया था। हिजाब खत्म किए थे, अरबी को छोड़कर रोमन लिपी के तुर्की भाषा के लिए स्वीकार किया था। इतना ही नहीं उन्होंने इस्लामी शरिया को छोड़कर तुर्की में स्विस कोड लागू किया था। वर्तमान राष्ट्रपति अर्दोआन को इससे कुछ लेना नहीं है। वे इस्लामी देशों के खलीफा बनना चाहते हैं। उनकी जीवनी दि न्यू सुल्तान में लिखा गया है ”तुर्की के राष्ट्रपति की विदेश मामलों की रणनीति का लक्ष्य मुसलमान होने का गर्व वापस लाना है। वो ऑटोमन का आधुनिक वर्जन लाना चाहते हैं ताकि तुर्क इस्लामिक महानता का नेतृत्व कर सकें।”

इसी ऑटोमन के साम्राज्य के संस्थापक एर्तरुल गाजी के नाम पर उन्होंने एक टीवी सीरियल भी बनवाया। आज इस सीरियल ने सभी इस्लामिक देशों में धूम मचा रखी है।

इस कट्‌टरपंथ के पीछे हैं सीरियल दिरलिस एर्तरुल

तुर्की में अब भी ज्यादातर लोग कलाम अतातुर्क की धर्मनिरपेक्ष सोच के समर्थक हैं। लेकिन 2003 के बाद से (अर्दोआन के सत्ता में आने के बाद से) इन लोगों के वर्चस्व तेजी से समाप्त हो रहा है। इस प्रक्रिया में टीवी सीरियल दिरलिस :एर्तरुल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2014 से अब तक इस सीरियल के पांच सीजन प्रसारित हो चुके हैं। सबसे खास बात ये है कि इस सीरियल के निर्माता महमत बोजदाग अर्दोआन की पार्टी के सदस्य हैं।

यह टीवी सीरियल एतिहासिक तथ्यों की बजाय इस्लामिक राष्ट्रवाद और अर्दोआन की राजनीति के लिए जमीन तैयार करने के लिए बनाया गया है। यह बात टर्किश स्कॉलर सेमही सिनानोअलु ने कल्चरल जर्नरल बिरिकिम में लिखी है कि कैसे इस तरह की टीवी सिरीज़ वर्तमान राजनीतिक शासन को प्रासंगिक बनाए रखने में राजनीतिक हथियार के तौर पर काम करती है।

सेमही ने यह भी लिखा है कि ऐसे टीवी ड्रामे की लोकप्रियता से यह भी पता चलता है कि दर्शक तुर्की की वर्तमान हालात से जूझने के बदले एक फंतासी भरी दुनिया में जाना चुन रहे हैं। तुर्की की बिगड़ती आर्थिक हालत और सीरिया संकट से ध्यान हटाने के लिए ऐसे टीवी ड्रामे राजनीतिक टूल की तरह काम करते हैं।

क्या है इसकी कहानी

इसकी कहानी ओटोमन साम्राज्य के संस्थापक एर्तरुल गाजी की कहानी है। इसमें जो कुछ है वो उसे सीधे शब्दों में कहा जा सकता है – इस्लाम, तलवार और खून । इसके जरिए इस्लाम का जो संदेश देने की कोशिश की गई है उसे हम आईएसआईएस के नाम से जानते हैं और उसे हम सीरिया में देख चुके हैं।

सबसेे चौकाने वाली बात ये है कि एर्तरुल गाजी के बारे में मुश्किल से पांच से दस पेज की जानकारी उपलब्ध है लेकिन इस पर 484 एपिसोड का सीरियल बनाया गया है। यानी कि बहुत कुछ मनमाना है जो किसी के राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति कर रहा है।

इसमें बताया गया है कि एर्तरुल गाजी अल्लाह के बताए रास्ते पर चल रहा है। जिसमें भयानक हिंसा है । कई बार तो सिर कलम का दृश्य देखते हुए इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों के सिर कलम की याद आ जाती है. पूरे ड्रामे में इस्लामिक श्रेष्ठता का बोध है।

पहले सीज़न के पहले एपिसोड का शुरुआती दृश्य है- तुर्क कबीलों के टेंट में लोग तलवार बना रहे हैं और उसकी धार को तेज़ कर रहे हैं। तुर्क कबीलों की ईसाइयों और बाइज़ेंटाइन से दुश्मनी है। हर लड़ाई में मारे जाने पर ईसाइयों के शव ख़ून से लथपथ बिखरे पड़े होते हैं। हीरो एर्तरुल ग़ाज़ी न केवल मामूली सिपाहियों का सिर कलम करता है बल्कि अपने कबीले के लोगों का सिर और धड़ अलग करता है।

अगर इस्लामिक स्टेट इससे प्रेरणा लेने लगे तो क्या हमें इससे हैरान होना चाहिए? क्या तलवार की महिमा गान इस्लाम की महिमा का बखान है? एक कबीलाई समाज के भीतर के सत्ता संघर्षों की तुलना में इस्लाम को निश्चित तौर पर और सकारात्मक रूप में दिखाया जा सकता है। ”

सबसे खास बात यह है कि बताया जा रहा है कि आमिर खान इस कहानी पर फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे हैं। इसी सिलसिले में वे तुर्की भी गए थे। हालांकि इस बात की अधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।

इमरान खान फैन है इसके

इस सीरियल को पाकिस्तान के टीवी पर उर्दू में डब करके दिखाया जा रहा है और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान इस सीरियल के बहुत बड़े फैन हैं। पिछले कुछ समय से वे इसका हवाला अपने ट्वीट्स में देते रहे हैं। पाकिस्तान में इस सीरियल की लोकप्रियता ठीक वैसी ही है जैसी भारत में रामायण और महाभारत की रही है। इसने वहां पर सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। यह सीरियल हिन्दी में भी डब किया गया है और इसे नेटफ्लिक्स भारत लाया है।

ये भी पढ़ें – वो कांग्रेसी कानून जो इसलिए लाया गया ताकि मथुरा और काशी हिन्दुओं को कभी न मिले

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