अल कायदा आतंकियों ने भी ली थी निजामुद्दीन मरकज में शरण, विकीलीक्स का दावा
अल-कायदा आतंकी करते रहे हैं तबलीगी बनकर भारत और पाकिस्तान की यात्रा
निजामुद्दीन मरकज के जरिए देश में कोरोना वायरस का संक्रमण फैलाने के सबब बने तबलीगी जमात के बारे में दुनिया में बहुत पहले से बहुत अच्छी राय नहीं रही हैं लेकिन भारत सरकार ने अब तक इसे केवल एक धार्मिक संगंठन ही माना है। जमात ने भी खुद को गैर राजनीतिक संगठन ही बताया है। इसकी खास बात यह है कि ये संगठन कहीं भी पंजीकृत नहीं है और इसके चलते इसके वित्तीय स्रोतों की कोई जानकारी भी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। इसके बारे में सबसे बड़ा खुलासा विकीलीक्स ने 2011 में एक दस्तावेज के जरिए किया था। इसमें कहा गया था कि अल कायदा के आतंकियों ने निजामुद्दीन स्थित जमात के मुख्यालय का उपयोग शरण लेने और यात्रा के लिए दस्तावेज बनाने के लिए किया था।
इतना ही नहीं मलेशिया के लेखक फरीश नूर ने अपनी पुस्तक में जमात पर बहुत सवाल उठाए हैं। उन्होंने सिलसेलवार उन घटनाओं का विवरण दिया है जिसमें की जमात की भूमिका संदेह के दायरे में हैं। उन्होंने कहा है कि ग्लास्गो एयरपोर्ट पर असफल हमले का आरोपी कफील अहमद भारत से हैं और उसके जमात से संबंध रहे हैं। इसके अलावा जैसे 7/7 हमले के आरोपी शहजाद तनवीर और मोहम्मद सिद्दीक खान के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने ड्यूसबेरी की तबलीगी मस्जिद में नमाज पढ़ी थी। इससे जमात पर संदेह होता है। ड्यूसबेरी की इस मस्जिद को जमात का यूरोपीय मुख्यालय माना जाता है।
फरीश नूर का कहना है कि लश्कर ए तैयबा के सूडान के सदस्य हमीर मोहम्मद ने भी खुद को तबलीगी का सदस्य बताकर पाकिस्तानी वीजा हासिल करने की कोशिश की थी। इसी तरह से सोमालिय के मुहम्मद सुलेमान बारे ने भी इसी तरह से भारत के रास्ते पाकिस्तान में घुसने का प्रयास किया था। अल कायदा का बोस्निया हर्जेगिवना का मुजाहीदीन कमांडर अबू जुबेर अल हैली ने भी बोस्निया से पाकिस्तान की यात्रा तबलीगी के रूप में ही की थी। इसी तरह से सउदी नागरिक अब्दुल बुखारी, जो कि कई देशों में संदिग्धों की सूची में शामिल है, भी दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तबलीगी मरकज में तबलीगी बनकर रहा था। फरीश नूर की यह किताब इस्लाम ऑन द मूव 2012 में प्रकाशित हुई थी।
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