श्री कृष्ण जन्मभूमि के मंदिर को देखकर गजनवी के सिपहसालार ने लिखा इसे बनाने में 10 करोड़ दीनार और दो सौ साल लगेंगे

श्री कृष्ण जन्मभूमि के मंदिर को देखकर गजनवी के सिपहसालार ने लिखा इसे बनाने में 10 करोड़ दीनार और दो सौ साल लगेंगे

कहानी श्रीकृष्ण जन्मभूमि की

एकात्म भारत

मथुरा स्थित श्रीकृृष्ण जन्मभूमि को लेकर मथुरा की एक कोर्ट में वाद दायर किया गया है, जिस पर सुनवाई की अगली तिथि 18 नवंबर निश्चित की गई है। इस मंदिर के बारे में पाठकों को अवगत कराने के लिए हम श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मामले को लेकर एक श्रृखंला प्रारंभ कर रहे हैं। आशा है आप इसके माध्यम से श्री कृष्ण जन्मभूमि के सत्य को जान सकेंगे।

पहली बार इस मंदिर पर मेहमूद गजनवी ने हमला किया था। समय था 1017 का। (बात निकली है तो जान लें कि इस्लामिक संगठन सिमी का स्लोगन एक है Waiting for Ghaznavi. और सोच लें कि इन्हें गजनवी का इंतजार क्यों है? ) गजनवी ने इस मंदिर को तोड़ा और लूटा था। हालांकि गजनवी ने इस स्थान पर कोई ईदगाह या मस्जिद नहीं बनाई थी। वो एक लूटेरा था और उसने केवल लूट की। ( हालांकि इस आदमी के बारे में डिस्कवरी ऑफ इंडिया में जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है कि गजनवी शिल्प कला का बड़ा प्रेमी था। )

गजनवी के साथ उसकी यशगाथा लिखने के लिए एक लेखक था। उसका नाम मीर मुंशी अल उताबी था और उसने गजवनी के लिए लिखी अपनी पुस्तक तारीख-ए-यमिनी में श्रीककृष्ण जन्मभूमि पर हुए इस हमले के बारे में लिखा है।

उताबी ने लिखा है कि

मथुरा के बीच में एक विशाल मंदिर था जिसे देखकर ऐसा लगता था कि इसे फरिश्तों ने बनाया होगा। इसका वर्णन करना नामुमकिन है और सुल्तान का कहना है कि यदि कोई अब इस भव्य मंदिर को बनाना चाहे तो 10 करोड़ दीनार और 200 साल लगेंगे।

जिस मंदिर को गजनवी ने लूटा था उस भव्य मंदिर का निर्माण चंद्रगुप्त विक्रमादित्या ने कराया था।

जाजन सिंह ने फिर बनाया मंदिर

गजनवी की लूट के बाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि स्थित मंदिर का 1150 में एक बार फिर पुर्ननिर्माण किया गया था। इस काम जाजन सिंह ने अपने हाथ में लिया था। उन्हें जज्जा के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने मथुरा के राजा विजयपाल की सहायता से इस मंदिर का पुर्ननिर्माण कराया था। जज्जा के वंशज आज भी जाजन पट्टी, नगला झींगा, नगला कटैलिया में निवास करते है। खुदाई में मिले संस्कृत के एक शिलालेख से भी जाजन सिंह (जज्ज) के मंदिर बनाने का पता चलता है।

शिलालेख के अनुसार मंदिर के व्यय के लिए दो मकान, छः दुकान और एक वाटिका भी दान दी गई थी। दिल्ली के राजा के परामर्श से 14 व्यक्तियों का एक समूह बनाया गया जिसके प्रधान जाजन सिंह थे।

इस मंदिर को सिकंदर लोदी के शासन काल में फिर एक बार तोड़ दिया था। इस मंदिर पर हुए हमलों को इस मंदिर के पत्थरों पर अंकित भी किया गया था।

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