अस्पताल में हुई थी 6 दिसंबर को घायल हुए कारसेवक की शादी

अस्पताल में हुई थी 6 दिसंबर को घायल हुए कारसेवक की शादी

पत्नी ने लिए थे घायल कारसेवक के फेरे

राम मंदिर की संघर्ष गाथा


इंदौर

राम मंदिर के लिए संघर्ष के 500 सालों में ऐसी अनेक कहानियां हैं जो हिंदुओं के संघर्ष और समर्पण को बताती हैं। ऐसी ही कहानी है, इंदौर के एक कार सेवक की। इस कारसेवक का पैर ढ़ांचा ढहाते समय फ्रेक्चर हो गया था। इस कार के लग्न लिखे जा चुके थे और वह अस्पताल में उपचाररत था। इसके बाद इस कार सेवक का विवाह अस्पताल में ही हुआ। यह कारसेवक रामजी कलसांगरा थे।

 1992 की कार सेवा के पहले राम जी के लग्न लिखे जा चुके थे। उनका विवाह 15 दिसंबर को होना था । लेकिन वे इसे भूलकर कार सेवा करने निकल पड़े। अयोध्या पहुंचे और ढांचे पर चढ़ गए। जब ढांचा भरभराकर गिरा, तो कई कार सेवक घायल हुए। बताया जाता है कि कई कार सेवक ढांचे में दबकर मारे भी गए। इसी दौरान ढांचे का एक पत्थर राम जी के पैर पर आकर गिरा। वे दर्द से चीख पड़े। साथी कारसेवक उन्हें उठाकर बाहर लाए। वहां एंबुलेंस मौजूद थी। उससे उन्हें फैजाबाद के जिला अस्पताल ले जाया गया।

चोट गंभीर थी। वे 4 दिन फैजाबाद के जिला अस्पताल में रहे। जब इंदौर के कारसेवक लौटने लगे तो वह राम जी को स्ट्रेचर सहित ट्रेन से इंदौर ले आए। यहां लाकर उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। डॉक्टरों के अनुसार उनका इलाज लंबा चलने वाला था, क्योंकि उनकी चोट गंभीर थी। घर वालों के सामने समस्या यह थी कि उनके लग्न लिखे जा चुके थे। उसे कैसे आगे बढ़ाए? 

अंततः यह तय किया गया राम जी का विवाह अस्पताल में ही होगा। रामजी चलने की स्थिति में नहीं थे इसके चलते उनकी पत्नी ने अकेले ही सात फेरे लिए और राम जी पलंग पर बैठे रहे। इस विवाह के साक्षी उनके परिवारजन के अलावा संघ के कुछ पदाधिकारी भी बने। जिसमें संघ प्रचारक अनिल दवे भी शामिल थे।

यह एक कारसेवक का अनोखा विवाह था। जिसके लिए व्यक्तिगत जीवन से बढ़कर राम मंदिर आंदोलन था। राम जी के बेटे देवव्रत पाटीदार ने हमें उनके विवाह का फोटो भी उपलब्ध कराया। 

नाम बदल कर गए सरकारी कर्मचारी

राम जी के अलावा और भी स्वयंसेवक अपने व्यक्तिगत परेशानियों को छोड़कर कार सेवा करने गए थे। यहां तक कि सरकारी नौकरी में शामिल कारसेवक विभागीय कार्रवाई के डर से अपना नाम बदलकर अयोध्या गए थे। लव हार्डिया अपने पिता के साथ कार्य सेवा में गए थे उनके पिता बैंक कर्मचारी थे। इसके चलते वे अपना नाम बदलकर रिजर्वेशन करवा कर कार सेवा के लिए पहुंचे थे। इसके अलावा कई कारसेवक ऐसे भी थे, जिनके परिवार में कोई बीमार था या गर्भवती पत्नी थी। लेकिन इसके बाद भी राम मंदिर बनाने का जुनून उन्हें नहीं रोक पाया। 

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fb image courtesy the quint

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