हिलाल-ए-पाकिस्तान हैं अमेरिका के नए राष्ट्रपति
सुनने में आश्चर्य हो सकता है लेकिन ये सच्चाई है कि अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बिडेन हिलाल-ए-पाकिस्तान हैं। यानी की उनके पाकिस्तान से इतने गहरे रिश्ते हैं कि पाकिस्तान ने उन्हें 2008 में हिलाल-ए-पाकिस्तान सम्मान से नवाजा था। इसके चलते बिडेन के राष्ट्रपति बनने पर पाकिस्तान के मीडिया में ऐसा माहौल है जैसे की गली का लड़का अमेरीका का राष्ट्रपति बन गया हो।
हिलाल का मतलब होता है वो उस तरह का चांद जैसा कि पाकिस्तान के झंडे में है। यानी की पाकिस्तान ने 2008 में ही बिडेन को, जो कि उस समय अमेरीका के उप राष्ट्रपति थे, अपने झंड़े का चांद घोषित कर दिया था।
पाकिस्तान के अखबार डॉन के अनुसार 2008 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी ने जो बिडन को पाकिस्तान के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान हिलाल-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया था। बताया गया है कि बिडेन को यह सम्मान पाकिस्तान को अमेरिका से डेढ़ अरब डॉलर की आर्थिक मदद दिलवाने में अहम भूमिका निभाने के कारण दिया गया था। यानीा की खस्ताहाल पाकिस्तान को इस मामले इस बार भी बिडेन से बड़ी-बड़ी उम्मीदें हैं।
पाकिस्तान में यह भी कहा जा रहा है कि बिडेन ने हमेशा ही कश्मीर के मामले में पाकिस्तान के रूख का समर्थन किया है। इसके चलते पाकिस्तान को उम्मीद बंधी है कि बिडेन कश्मीर में पुन: धारा 370 लगवाने के मामले में भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनानेे में मददगार साबित होंगे। पाकिस्तानी मीडिया का कहना है कि बिडेन ने हमेशा कश्मीर में जनमत संग्रह कराए जाने का समर्थन किया है।
370 का विरोध किया था
कहा जाता है कि बिडेन नरेंद्र मोदी की सरकार के उस फ़ैसले का भी विरोध किया था जब मोदी ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत कश्मीर को मिलने वाले विशेष राज्य के दर्जे को ख़त्म कर दिया था। उस समय भी बिडेन ने कश्मीर में 5 अगस्त 2019 के पहले वासी स्थिति बहाल करने को कहा था। यहां तक कि पाकिस्तानी मीडिया का कहना है कि बिडेन रोहिंग्या और चीन के उग्युर मुुसलमानों के भी समर्थन में रहे हैं।
चुनाव के एजेंडे में था सीएए का विरोध
इतना ही नहीं बि़डेन के चुनाव अभियान के लिए बनाई गई वेबसाइट पर भी बिडेन कश्मीर और सीएए के मामले में पाकिस्तान के समर्थक दिखाई देते हैं।
इसमें कहा गया है, “भारत में धर्मनिरपेक्षता और बहुनस्ली के साथ बहुधार्मिक लोकतंत्र की पुरानी पंरपरा है। ऐसे में सरकार के ये फ़ैसले बिल्कुल ही उलट हैं।”
कश्मीर के मामले में इसमें कहा गया है कि कश्मीरी लोगों के अधिकारों को बहाल करने के लिए भारत को चाहिए कि वो हर क़दम उठाए। असहमति पर पाबंदी, शांतिपूर्ण प्रदर्शन को रोकना, इंटरनेट सेवा बंद करना या धीमा करना लोकतंत्र को कमज़ोर करना है।
उन्होंने भारत के नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए और नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न यानी एनआरसी को भी निराशाजनक बताया था।
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