मिलिए विश्व हिंदू परिषद के पारसी उपाध्यक्ष से
कॉलेज के समय से स्वयंसेवक हैं फिरोज एडुलजी
कोलकाता
नाम फिरोज एडुलजी। पता खुर्शीद मदान मेंशन, मोला अली मजार, सियालदाह, कोलकाता।
पेशा: वकालत, धर्म : पारसी, खास बात: अभी-अभी विश्व हिंदू परिषद ने दक्षिण बंगाल इकाई का उपाध्यक्ष नियुक्त किया है।
विश्व हिंदू परिषद में सामान्यतः जैन और सिख धर्म को मानने वाले सरलता से मिल जाते हैं लेकिन पहली बार विश्व हिंदू परिषद ने एक पारसी वकील को अपना उपाध्यक्ष बनाया है। ये हैं फिरोज एडुलजी, जो नेशनल स्कूल ऑफ लॉ बेंगलुरु से पढ़ कर लौटे हैं और वे वहीं पर अपने एक साथी के जरिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए थे।
वे अभी कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत करते हैं और विश्व हिंदू परिषद से अपने जुड़ाव के बारे में बताते हुए कहते हैं कि मेरे जीवन का एक ही लक्ष्य है कि जब तक जीवित हूं सनातन धर्म और हिंदू सुरक्षित रहें। अपने कार्यालय में जहां कानून की किताबों के साथ ही बहुत ही धर्म शास्त्र की पुस्तकें भी मौजूद है फिरोज बताते हैं कि पारसियों के धर्म ग्रंथ ज़ैद अवेस्ता में भी हिंदू का उल्लेख है। फिरोज के ऑफिस में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद से संबंधित बहुत सारा साहित्य भी देखने को मिलता है।
पारसी और हिंदुओं में ज्यादा अंतर नहीं
फिरोज बताते हैं कि यदि आप दिल से देखेंगे तो पाएंगे कि जोरोस्ट्रियन और हिंदुत्व में ज्यादा अंतर नहीं है दोनों समान हैं दोनों के स्रोत समान हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ अपने जुड़ाव के बारे में फिरोज बताते हैं कि 12 साल पहले जब मैं बेंगलुरु के नेशनल स्कूल ऑफ लॉ में पढ़ाई कर रहा था उस समय मेरे एक साथी विक्रमजीत बनर्जी ने मुझे आर एस एस के बाद बारे में बताया। बनर्जी ने मुझे कहीं आर एस एस पदाधिकारियों से भी मिलवाया। इसके बाद में स्वयंसेवक बन गया और तब से अब तक मैं स्वयं सेवक हूं।
पिता के चलते हिंदुत्व में रुचि
फिरोज बताते हैं कि उनके पिता नवल एडुलजी भारतीय नौसेना में थे। 1992 में उनका निधन हो गया। पिता का जन्म जबलपुर में हुआ था और उनका बहुत सारा समय इलाहाबाद में बीता इसके चलते पिता की रूचि संस्कृत भाषा में थी। संभवतः वह भारत के इकलौते पारसी व्यक्ति थे जो की संस्कृत में महारत रखते थे। फिरोज ने कहा कि पिता ने मुझसे कहा था राम जन्मभूमि मामले पर नजर रखना। इसी के चलते मेरा मानना है कि हिंदुत्व का डीएनए मुझे मेरे पिता से मिला है। फिरोज की मां परवेज का निधन 2012 में हुआ। वे ब्रिटिश ऑक्सीजन कंपनी में नौकरी करती थीं।
हिंदुत्व के मुद्दों पर लड़े
जब बंगाल सरकार ने दशहरे पर होने वाली शस्त्र पूजा कार्यक्रम पर रोक लगाई थी, उस समय इस मामले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने वाले वकील फिरोज एडुलजी ही थे। इस तरह के मामलों में वे बढ़-चढ़कर विधिक सहायता करते आए हैं। हालांकि उन्हें इस बात का अफसोस है कि वह राम मंदिर मामले में हुई सुनवाई की विधिक टीम में शामिल नहीं हो सके क्योंकि इसकी सुनवाई दिल्ली में चल रही थी और वे कोलकाता में वकालत करते हैं।
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