ब्रिटिश जज ने भी राम जन्मस्थान पर बाबरी ढांचे को दुर्भाग्यपूर्ण कहा था…

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अंग्रेजों द्वारा लिखित फैजाबाद के इतिहास में भी है राम मंदिर का उल्लेख

अयोध्या
भारत में मुग़ल काल से ही यूरोपियन व्यापारियों और यात्रियों का आना प्रारंभ हो गया था। इनमें से बहुतों ने अपने यात्रा वृत्तांत संस्मरण आदि लिखे हैं। जब राम जन्मभूमि पर स्थित मंदिर को बाबर द्वारा तोड़े जाने के प्रमाण मांगे गए, तब अनेक विद्वानों ने जगह-जगह से ढूंढकर इन अभिलेखों को प्रस्तुत किया। ये वक्तव्य राम जन्मभूमि मामले के महत्वपूर्ण दस्तावेज बन गए। इन वृत्तांतों में राम जन्मस्थान के अलावा अयोध्या के बारे में कई बातें, स्थानीय लोगों की सोच मान्यता आदि का पता चलता है। इसी कड़ी में फैज़ाबाद के जिला जज कर्नल चामियर का वह निर्णय भी उल्लेखनीय है जो उन्होंने सिविल अपील संख्या 27/1885 के सिलसिले में इस स्थल का निरीक्षण करने के बाद दिया था।


उसकी शब्दावली कुछ प्रकार है : मैंने कल भी सभी पक्षों की मौजूदगी में विवादित सभी स्थलों का निरीक्षण किया. मैंने पाया कि सम्राट बाबर द्वारा निर्मित मस्जिद अयोध्या में नदी के किनारे पर पश्चिम अथवा दक्षिण पर खड़ी है तथा यहां आबादी नहीं है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक मस्जिद, हिन्दुओं द्वारा विशेष रूप से पवित्र मानी जाने वाली भूमि पर खड़ी है। किंतु, यह घटना 356 वर्ष पहले की है और इस शिकायत को दूर करने के लिए काफ़ी विलम्ब हो गया है। अब जो किया जा सकता है, वह यह कि पक्षों को यथास्थिति में रखा जाए। प्रस्तुत मुक़दमे जैसे मामले में किसी भी प्रकार का परिवर्तन लाभ की अपेक्षा हानि तथा व्यवस्था को नुक़सान ही पहुंचाएगा।

इसी तरह की बात ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापारी विलियम फिंच, जो कि 1608 ई. से 1611 ई. तक भारत में रहा था, ने भी लिखा है कि अवध (अयोध्या) एक प्राचीन नगर है जो एक पठान राजा की राजधानी है और इस समय खंडहर हो गई है। यहां का क़िला चार सौ वर्ष पुराना है। यहां पर रामीचंद्र (रामचंद्र) का क़िला और महल भी खंडहर के रूप में विद्यमान है। इन्हें भारतीय लोग बड़ा देवता मानते हैं और यह कहते हैं कि उन्होंने यहां अवतार लिया था। यहां पर कुछ ब्राह्मण रहते हैं जो पास की नदी में स्नान करने वाले सभी यात्रियों के नाम लिखते हैं और उनके अनुसार यह प्रथा चार लाख साल से चली आ रही है।

कारनेगी द्वारा लिखित फ़ैज़ाबाद का इतिहास
पी कारनेगी ने फैज़ाबाद तहसील का इतिहास 1870 में लिखा। उसने अयोध्या में रामकोट के बुर्ज, मीनारों और महलों का विवरण देते हुए यह बताया है कि राम-जन्मस्थान मंदिर के स्तम्भ कसौटी पत्थर के नक्काशी करके बनाए गए हैं। जिनका उपयोग मुसलमानों ने बाबर की मस्जिद के निर्माण के लिए किया था। कारनेगी ने यह भी उल्लेख किया है कि अट्ठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में समीप की ही भूमि में एक नए जन्मस्थान मंदिर का निर्माण कराया गया था। उसका यह कहना है कि 1855 ई. तक हिन्दू और मुसलमान दोनों ही इस मस्जिद में पूजा करते थे। (विश्व संवाद केंद्र से साभार)

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