बांबे हाईकोर्ट ने कहा, कोरोना के मामले में तबलीगियों को बलि का बकरा बनाया गया, रद्द की एफआईआर
कहा कि “action of central government was taken mainly against Muslim persons who had come to Markaz Delhi for Tabligh Jamaat…”
36 लोगों के खिलाफ एफआईआर रद्द की, कहां पुलिस ने केस दर्ज करने में दिमाग नहीं लगाया
औरंगाबाद.
बांबे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में भाग लेने वाले 29 विदेशियों सहित कुल 36 तबलिगीयों के खिलाफ महामारी अधिनियम सहित अन्य मामलों में दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया। इसके साथ अपने आदेश में कोर्ट ने कहा है कि इन्हें देश में कोरोना फैलाने के मामले में बलि का बकरा बनाया गया है। अपने आदेश में उच्च न्यायालय की डबल बेंच ने कहा है कि जब भी इस तरह की महामारी या दुर्घटनाएं होती हैं, राजनीतिक सरकारें इसके लिए बलि के बकरे ढ़ूंढ़ती हैं। यह मामला भी इसी तरह का लगता है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि पुलिस ने इस मामले में दिमाग का उपयोग नहीं किया।
जस्टिस टीवी नलवड़े और एमजी सेवलीकर की पीठ ने इस मामले में 29 विदेशी और सात भारतीय नागरिकों द्वारा दायर याचिका की सुनवाई करते हुए केन्द्र सरकार द्वारा जारी विभिन्न आदेशों और दिशा निर्देशों का हवाला देते हुए। कहा कि इसमें विदेशी नागरिकों को भारतीय धर्मस्थलों व अन्य स्थानों पर घूमने के लिए कोई प्रतिबंध नही लगाए गए थे।
पुलिस ने दिमाग नहीं लगाया
ईरान, आइवरी कोस्ट, बेनिन और इंडोनेशिया के नागरिकों की ओर से कोर्ट में कहा गया कि वे भारत सरकार द्वारा जारी वैध वीजे पर यहां आए थे। उन्होंने बताया कि हम भारतीय संस्कृति, परंपरा, मेहमानवाजी और खाने का आनंद लेने भारत आए थे। उन्होंने यह भी कहा कि भारत आते समय एयरपोर्ट पर उनकी स्क्रीनिंग भी की गई थी। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हमने स्थानीय अधिकारियों को इसकी सूचना दे दी थी। उन्होंने कहा कि वे यहां पर धर्मिक आचरण का अध्ययन करने आए थे , धर्म का प्रचार करने के लिए नहीं।
पुलिस की ओर इस बात का विरोध किया गया औऱ् कहा गया कि ये लोग भारत पर्यटक वीजा पर आए थे और वीजा के नियमों का उल्लंघन कर रहे थे।
इस बारे में कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में मैकेनिकली काम किया और क्रिमीलन प्रोसीजर कोड और अन्य कानूनों के अनुसार प्रक्रिया का पालन नहीं किया। पुलिस की आलोचना करते हुए कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस के दस्तावेज दिखाते हैं कि उसने इस मामले में दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने कोई भी प्रमाण न होने के बावजूद कोर्ट में चार्जशीट फाइल की।
मस्जिद में रुके थे विदेशी
इस मामले में कोर्ट के बताया गया था कि ये विदेशी लोग मस्जिदों में रुके थे। इस बार बेंच ने कहा कि मस्जिद में रूकने से किसी कानून का उल्लंघन नहीं होता है। बेंच का कहना था कि लॉकडाउन के दौरान होटल और रेस्टोरेंट्स बंद थे। ऐसी स्थिति में कई लोगों को धर्मस्थलों पर रूकने के लिए स्थान दिया गया था। इस मामले में बेंच ने माइग्रेंट लेबर का उदाहरण दिया और कहा कि गुरुद्वारों ने उनके लिए भी रूकने की व्यवस्था की थी।
बेंच ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान मस्जिदें बंद थी और इनमें नमाज नहीं हो रही थी। पुलिस ने भी इस तरह का कोई प्रमाण नहीं दिया है कि मस्जिद में नमाज हो रही थी। इस तरह से यह नहीं माना जा सकता है कि मस्जिदों में स्थानीय शासन के आदेशों को उल्लंघन हुआ है।
केन्द्र सरकार ने किया भेदभाव
कोर्ट के आदेश की सबसे खास बात ये है कि इस मामले के अभिलेखों से लगता है कि केन्द्र सरकार निजामुद्दीन में तबलीगी जमात के मरकज में आए मुस्लिमों के खिलाफ एक्शन ले रही थी। इस समान दूसरे धर्मों के विदेशी नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई। बेंच ने इसे नागरिकता बिल पर प्रदर्शनों से जोड़ते हुए कहा कि इस तरह से ऐसा लगता है कि यह भारतीय मुस्लिमों के खिलाफ एक अप्रत्यक्ष चेतावनी थी।
“The record of this matter and the submissions made show that action of central government was taken mainly against Muslim persons who had come to Markaz Delhi for Tabligh Jamaat. Similar action was not taken against other foreigners belonging to other religions,” it said, referring to this action being an “indirect warning to Indian Muslims” after large-scale protests were held against the Citizenship Amendment Act, 2019 across the country.
कोर्ट ने यह भी कहा कि मीडिया ये एक बड़ा दुष्प्रचार किया गया कि देश मे कोविड-19 फैलने के पीछे मरकज में आए विदेशी जिम्मेदार हैं।
अतिथि देवो भव:
बेंच ने हमारी अतिथि देवो भव: की परंपरा का हवाला देते हुए कहा है कि महामारी के समय हमें और सहिष्णु तथा संवेदनशील होना चाहिए। इसकी बजाय हमने इन्हें वायरल फैलाने तथा यात्रा दस्तावेजों के उल्लंघन के मामले में जेल भेज दिया जबकि इन बातों के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं। बेंच ने यह भी कहा है तबलीगी जमात की गतिविधियां 50 वर्ष से अधिक समय से चल रही हैं और ये पूरे वर्ष जारी रहती हैं।
“A political government tries to find the scapegoat when there is pandemic or calamity and the circumstances show that there is probability that these foreigners were chosen to make them scapegoats. The aforesaid circumstances and the latest figures of infection in India show that such action against present petitioners should not have been taken. It is now high time for the concerned to repent about this action taken against the foreigners and to take some positive steps to repair the damage done by such action,” the court said.
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