अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया में भी तो हिंदू कुलपति बनाइए कभी

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया में भी तो हिंदू कुलपति बनाइए कभी

तभी आप उठा सकते हैं मुस्लिम शिक्षक से न पढ़ने के बीएचयू के छात्रों के निर्णय पर सवाल

सुचेन्द्र मिश्रा

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत के मुस्लिम शिक्षक का विरोध हो रहा है। कई हिंदूवादी संगठनों ने भी इस मुद्दे पर बीएचयू के छात्रों को नसीहत दी है कि उन्हें यह नहीं देखना चाहिए कि किस धर्म का व्यक्ति संस्कृत पढ़ा रहा है। बात सही है। यह नहीं देखा जाना चाहिए की कौन से धर्म और जाति का व्यक्ति क्या पढ़ा रहा है, यदि वह एक निर्धारित प्रक्रिया का पालन करके और उस प्रक्रिया के जरिए चुनकर आया हों। फिरोज खान ने सहायक प्राध्यापक बनने के लिए सारी योग्यताएं प्राप्त की है और वे बीएचयू द्वारा चयन के लिए अपनाई गई प्रक्रिया के माध्यम से चुनकर आए हैं। 

लेकिन जब मैं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के कुलपतियों की सूची देखता हूं तो मुझे उसमें एक भी हिंदू नाम दिखाई नहीं देता है। क्या यह प्रश्न इन दोनों विश्वविद्यालयों पर लागू नहीं होता?

 1923 से लेकर आज तक 96 बरस हो चुके हैं लेकिन अब तक एक भी हिंदू अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का कुलपति नहीं बना है। 96 साल की इस अवधि में यूनिवर्सिटी को 24 कुलपति मिल चुके हैं। यही स्थिति जामिया मिलिया इस्लामिया की है। यहां भी 1920 से लेकर अब तक यूनिवर्सिटी में 14 कुलपति हो चुके हैं लेकिन इनमें से एक भी अब तक हिंदू नहीं था। 

मैं जानना चाहता हूं कि आखिर सद्भावना की यह एकतरफा मिसाल कब तक चलेगी? केवल जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ही इसके उदाहरण नहीं हैं। इस तरह के कई संस्थान हैं जो कि गैर हिंदुओं के हैं और वहां पर कभी भी शीर्ष पदों पर हिंदुओं को नियुक्ति नहीं दी गई। दुर्भाग्य की बात तो यह है कि राष्ट्रवादी टैग लगाकर घूमने वाले कुछ लोग भी फिरोज खान की नियुक्ति को सद्भावना की दृष्टि से देखते हैं। वह इस मामले में भी तर्क का उपयोग करना नहीं चाहते। 

फिरोज खान को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत साहित्य पढ़ाने के लिए नहीं किया गया है क्योंकि जहां पर फिरोज खान की नियुक्ति हुई है वहां पर धर्म और कर्मकांड की पढ़ाई होती है यदि मामला केवल संस्कृत पढ़ाने का होता तो विश्वविद्यालय के लिटरेचर विभाग में उनकी नियुक्ति होती। इस नियुक्ति को लेकर विवाद इसलिए भी बताया जाता है कि यह पद पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित था और इस पद के लिए 16 उम्मीदवारों ने साक्षात्कार दिए थे। जिनमें से शेष 15 प्रत्याशियों को साक्षात्कार में दो-दो अंक दिए गए हैं वही फिरोज खान को साक्षात्कार में पूरे अंक मिले हैं हालांकि मैं इस बात की पुष्टि नहीं करता क्योंकि मैंने इससे संबंधित कोई दस्तावेज नहीं देखे हैं। 

कुल मिलाकर बात केवल इतनी सी है कि यदि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिलिया इस्लामिया का कुलपति कोई हिंदू नहीं बन सकता तो धर्म और कर्मकांड के छात्र किसी मुस्लिम से नहीं पढ़ेंगे ऐसा कहने का उन्हें अधिकार है और उन्हें सद्भावना और समरसता की घुट्टी पिलाया जाना गलत है। जो सद्भावना और समरसता की बात करके इन छात्रों को अपना आंदोलन बंद करने की सलाह दे रहे हैं उन्हें पहले जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों को सलाह देनी चाहिए। 

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