पाकिस्तानी हिन्दुओं को क्यों हर दिन होता है हिन्दू होने पर पछतावा

पाकिस्तानी हिन्दुओं को क्यों हर दिन होता है हिन्दू होने पर पछतावा

इसकी जड़े पाकिस्तान की उन स्कूली किताबों में जिनमें हिन्दुओं को खलनायक बताया गया है

इस्लामाबाद.

पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की दुर्दशा से हर कोई परिचित है। वहां हिन्दू होनो का मतलब वहां के हिन्दू ही जानते हैं। ऐसे में बीबीसी ने पाकिस्तान के कुछ पढ़े लिखे युवाओं से बात कर पाकिस्तान में उनके अनुभवों को एक खबर में साझा किया है। युवाओं का कहना है कि कभी कभी तो अपना नाम बतानें में भी उलझन होती है। कईं बार ऐसा लगता है कि उनका नाम मुकेश, किशोर या आकाश की जगह इमरान, अब्दुल्ला या आमिर होता तो परिचय देने में विचित्र प्रतिक्रियाएं नहीं मिलती। इस स्टोरी को पढ़िए और जानिए कि पाकिस्तान में हिन्दू होने का क्या मतलब है जबकि पूरी सरकरा हर समय हिन्दुओं को कटघरे में खड़ा करने में लगी रहती है।

पाकिस्तान में स्कूली किताबें क्या हिन्दुओं के ख़िलाफ़ नफ़रत सिखा रही हैं?

सोचिए आपका नाम इमरान, अब्दुल्ला या आमिर है और आप पाकिस्तान में रहते हैं. निश्चित रूप से, ऐसा कभी नहीं हुआ होगा कि अनजान लोगों से पहली मुलाकात के दौरान अपना परिचय देते समय आपको सोचना पड़ा हो या आपके दिमाग में यह सवाल आया हो, कि पता नहीं सामने वाला व्यक्ति मेरा नाम सुनकर क्या प्रतिक्रिया देगा?

लेकिन अगर आपका नाम किशोर, मुकेश या आकाश है, तो शायद कई बार आपके लिए अपना नाम बताना ही सबसे मुश्किल कदम हो सकता है. कुछ नहीं पता कि कब कौन पूछले कि आप भारत से कब आए?

आपको 14 अगस्त के बजाय 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाने की भी सलाह दी जा सकती है. और कुछ नहीं तो भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच में जब भारतीय टीम अच्छा प्रदर्शन करने लगे, तो यार दोस्त ही व्यंग्य करने लगेंगे कि तेरी टीम तो जीतने लगी है.

इसके अलावा, आपको बचपन और जवानी के कई साल एक ऐसी पीड़ा से भी गुजरना पड़ सकता है, जब आपको हर दिन अपने हिंदू होने पर पछतावा होगा. इन सबका संभावित परिणाम यह भी हो सकता है कि धीरे-धीरे आप अपने आपको हीन, असहाय और मजबूर महसूस करने लगेंगे.

यह तब हो सकता है जब आप स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय में समाजिक विज्ञान या पाकिस्तान स्टडीज़ की किताबें पढ़ना शुरू करेंगे. लेकिन इन किताबों में ऐसा क्या हो सकता है जो हिंदुओं के लिए अपमानजनक है?

आइए जानते हैं सिंध प्रांत के कुछ पाकिस्तानी हिंदू और मुस्लिम छात्रों की ज़बानी, जिन्होंने ये किताबें उन दिनों में पढ़ी थी जब वो छात्र थे.

राजेश कुमार

‘अत्याचारी हिंदू’

हमने पच्चीस से पैंतीस साल की उम्र के कुछ युवा लड़कों और लड़कियों से मुलाक़ात की और यह जानना चाहा कि स्कूल की किताबों में वे कौन-सी चीजें थीं, जिनसे स्कूल और कॉलेज के दिनों में वो आहत होते थे.

जवाब में, इन युवाओं ने कुछ पाठ्य पुस्तकों के अंशों को दोहराया:

“इतिहास में हिंदुओं ने मुसलमानों पर बहुत अत्याचार किया था.”

“काफ़िर का अर्थ है, जो बुतों या मूर्तियों की पूजा करने वाला होता है.”

“पहले के समय में, हिंदू अपनी बेटियों को पैदा होते ही ज़िंदा दफ़न कर देते थे.”

हिंदू मानवता के दुश्मन हैं

विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित इन युवाओं ने, जब अपनी आँखें खोलीं, तो उन्होंने अपने चारों ओर सहिष्णुता और भाईचारे का माहौल देखा. चाहे वह दोस्ती और पड़ोस हो या ईद, होली और दिवाली के त्योहार, कम से कम व्यक्तिगत रूप से, उन्हें हिंदू और मुसलमानों के बीच कोई अंतर महसूस नहीं हुआ.

लेकिन जब ये छात्र घर छोड़कर स्कूल और कॉलेज गए, तब पहली बार उन्हें महसूस हुआ कि उनके बीच घृणा और पक्षपात के बीज बोए जा रहे हैं. उनके अनुसार इसकी ज़िम्मेदार कोई और नहीं बल्कि उनकी अपनी स्कूल की किताबे हैं.

सिंध प्रांत के हैदराबाद शहर में रहने वाले राजेश कुमार, जो चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़े होने के साथ-साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं. राजेश कुमार सिंध टेक्स्ट बुक बोर्ड के 11वीं और 12वीं कक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल पाकिस्तान स्टडीज़ की पुस्तक का हवाला देते हैं. उन्होंने यह पुस्तक कॉलेज में पढ़ी थी.

उस पुस्तक की पृष्ठ संख्या 33 पर लिखा था कि मानवता के दुश्मन हिन्दुओं और सिखों ने हज़ारों बल्कि लाखों महिलाओं, बच्चों, बूढ़ों और युवाओं को बेदर्दी से क़त्ल किया और अपमानित किया था.

इसका मतलब यह है कि इन लेखकों के दिमाग में यह बात पहले से थी कि सिख और हिंदू मानवता के दुश्मन हैं. लेकिन, अगर कहीं कोई दंगा होता है, तो मारने वाले दोनों तरफ होते हैं और समान रूप से दोषी होते हैं.

डॉ. राजवंती कुमारी

मुसलमानों के दुश्मन’

युवा डॉक्टर राजवंती कुमारी ने अपनी नौवीं और दसवीं कक्षा की पाकिस्तान स्टडीज़ विषय की किताब के बारे में बताते हुए कहा कि इस किताब में हिंदुओं को मुसलमानों का दुश्मन बताया गया था.

इस किताब की पृष्ठ संख्या 24 पर लिखा था कि मुसलमानों और हिंदुओं ने बहुत से आंदोलनों में मिल कर एक साथ काम किया था, लेकिन यह साथ लंबे समय तक नहीं चल सका. हिंदुओं की मुस्लिमों से दुश्मनी सामने आ गई थी.

राजवंती सवाल पूछती हैं कि वह ख़ुद हिंदू हैं, वो मुसलमानों की दुश्मन कैसे हो सकती हैं?

“मैं मुसलमानों के साथ पली बढ़ी हूँ, मेरे सभी दोस्त मुसलमान हैं. मैंने उनके और उन्होंने मेरे त्योहार एक साथ मनाएं हैं तो हमारी दुश्मनी कैसे हो सकती है?

पक्षपात, घृणा और अवमानना

पाकिस्तान की 3.5 प्रतिशत आबादी गैर-मुस्लिम है. एक अनुमान के अनुसार पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 1.5 प्रतिशत है.

अमेरिकी सरकार की तरफ से 2011 में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, पाकिस्तान के स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली पाठ्य पुस्तकें हिंदुओं और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए पूर्वाग्रह और घृणा को बढ़ाती हैं.

अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के इस शोध के लिए, देश भर में पहली से दसवीं कक्षा तक पढ़ाई जाने वाली सौ पाठ्य पुस्तकों की समीक्षा की गई. इसके अलावा स्कूलों का दौरा करके छात्रों और शिक्षकों से भी बात की गई.

शोध के अनुसार, स्कूल की किताबें पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं की वफादारी को पड़ोसी देश भारत से जोड़ने का प्रयास करती हैं. इस तरह, छात्रों में यह धारणा बनती है कि गैर-मुस्लिमों के अंदर पाकिस्तान के लिए देशभक्ती नहीं है.

‘हिंदू खलनायक बन जाता है’

जाने-माने शिक्षाविद एएच नैयर का कहना है कि आमतौर पर पाकिस्तान में चल रही पाठ्य पुस्तकों में हिंदुओं के खिलाफ घृणा एक ख़ास तरीके से व्यक्त की जाती है.

वह बताते हैं कि जब तहरीक-ए-पाकिस्तान का इतिहास पढ़ाया जाता है. तब इसमें दो राजनीतिक दलों, मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच के मतभेदों की व्याख्या, मुस्लिम और हिंदुओं की लड़ाई के रूप में की जाती है.

एएच नैयर कहते हैं, “इस तरह, हमारी पाठ्य पुस्तकों में हिंदू खलनायक बन जाते हैं, जो शायद पाकिस्तान की स्थापना और इसके पीछे की राजनीति को सही ठहराने की कोशिश है.”

वह पाठ्य पुस्तकों में एक और महत्वपूर्ण समस्या बताते हैं. उनका कहना है कि जहां एक तरफ इन पुस्तकों में मुस्लिम इतिहास और सभ्यता को प्रमुखता से प्रस्तुत किया गया है, वहीं दूसरी तरफ हिंदू इतिहास का कोई उल्लेख नहीं मिलता है. उदाहरण के लिए, उपमहाद्वीप का इतिहास, इस क्षेत्र में मुसलमानों के आगमन से शुरू होता है, लेकिन उससे पहले के हिंदू शासकों का उल्लेख नहीं किया जाता है.

किताबें कैसे तैयार की जाती हैं?

सिंध प्रांत में आधिकारिक स्तर पर पाठ्य पुस्तकों को तैयार करने के लिए सिंध टेक्स्ट बुक बोर्ड ज़िम्मेदार है.

संस्थान के तकनीकी निदेशक यूसुफ अहमद शेख ने बीबीसी को बताया कि पाठ्यक्रम उन्हें ‘ब्यूरो ऑफ करिकुलम’ द्वारा दिया गया था, जिसके अनुसार किताबें तैयार की जाती हैं.

पाठ्यक्रम मिलने के बाद हम अपने लेखकों के पूल से लेखकों का चयन करते हैं और उन्हें पुस्तक बनाने का कार्य सौंपते हैं. जब लेखक किताब लिख देता है, तो हमारे विशेषज्ञ इसकी जांच करते हैं. अंतिम चरण में, ब्यूरो ऑफ करिकुलम भी पुस्तक की समीक्षा करता है.

यूसुफ अहमद शेख के अनुसार, सिंध टेक्स्ट बुक बोर्ड ‘ब्यूरो ऑफ करिकुलम’ द्वारा दिए गए सिलेबस के अनुसार किताबें तैयार करने के लिए बाध्य है और निर्धारित दायरे से बाहर नहीं जा सकता है.

पारा मांगी

‘महिलाओं को निम्न स्थान’

सरकारी क्षेत्र में कर्मचारी और समाचार पत्रों में स्तंभ लिखने वाली, पारा मांगी, शिकारपुर की निवासी हैं. उन्होंने इंटरमीडिएट में पाकिस्तान स्टडीज़ की पुस्तक में पढ़ा था, “संकीर्णता ने हिंदू समाज को पंगु बना दिया था. जिसमें महिला को निम्न स्थान दिया गया था.”

पारा के अनुसार, वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत है. हिंदू धर्म में तो देवियों की पूजा की जाती है. उन्हें दुर्गा माता और काली माता कहा जाता है.

वह कहती हैं, “हाँ, यह ज़रूर है कि आज के दौर में महिलाएं अपना हक पाने के लिए जो संघर्ष कर रही हैं वह हर धर्म और हर समाज में चल रहा है. यह तो पूरी दुनिया की समस्या है. हर जगह महिलाएं अपना हक पाने की कोशिश कर रही हैं.”

राजवंती कुमारी पुस्तकों से बनी इस धारणा को तोड़ने करने के लिए अपने निजी जीवन का हवाला देती हैं.

राजवंती बताती हैं, “मेरे परिवार में हम पांच बहनें हैं. मेरे माता-पिता ने हमारे साथ कभी बुरा व्यवहार नहीं किया है. हम सभी बहनों को बहुत सम्मान दिया जाता था. हिंदू बेटियों को घर की लक्ष्मी कहते हैं, वो तो घर की बरकत होती हैं.”

राजेश कुमार के अनुसार, ”हिंदू धर्म सहित दुनिया के सभी धर्म मानवाधिकारों और समानता की बात करते हैं.”

“जहां तक हिंदुओं के बीच जाति व्यवस्था का सवाल है, वो तो आज के दौर में, कम से कम पाकिस्तान में तो समाप्त हो चुकी है. यह अब ‘कास्ट’ नहीं बल्कि ‘क्लास’ का बंटवारा बन कर रह गया है.”

पत्रकार संजय मिठरानी

जनता की प्रतिक्रिया

सिंध टेक्स्ट बुक बोर्ड के तकनीकी निदेशक, यूसुफ अहमद शेख के अनुसार, पाठ्यपुस्तकों के प्रकाशन के बाद, संस्थान को छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों से प्रतिक्रिया मिलती है. इस प्रतिक्रिया पर विचार किया जाता है और अगर पुस्तकों में बदलाव की जरूरत होती है, तो बदलाव भी किया जाता है.

वह बताते हैं, “कुछ साल पहले, सिंध प्रांत में पाठ्यक्रम में शामिल सामाजिक विज्ञान और पाकिस्तान स्टडीज़ की कुछ पुस्तकों पर हमें धार्मिक अल्पसंख्यकों की तरफ से प्रतिक्रिया मिली थी. हमें बताया गया था कि इन किताबों के कुछ हिस्से गैर-मुस्लिमों को आहत कर सकते हैं. इसके बाद उन पुस्तकों की समीक्षा की गई और आपत्तिजनक सामग्री को हटा दिया गया.”

यूसुफ अहमद शेख का दावा है कि 2017 में पहली से आठवीं कक्षा तक की किताबें बदल दी गई थीं जबकि नौवीं और दसवीं कक्षा की किताबें इस साल अपडेट की जा रही हैं. अगले साल ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा की किताबों की समीक्षा की जाएगी.

साभार बीबीसी

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