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भाजपा ने अब तक गठबंधन में नुकसान ही उठाया है
सुचेन्द्र मिश्रा
महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार का मामला मुख्यमंत्री की कुर्सी में उलझा हुआ है। अपना-अपना मुख्यमंत्री बनाने के दावे के बाद अब भाजपा की ओर से राष्ट्रपति शासन लगाने की बात भी चलने लगी है। भाजपा- शिवसेना का गठबंधन 25 वर्ष से अधिक पुराना है और इसे भाजपा का सबसे स्वाभाविक गठबंधन माना जाता है क्योंकि कहा जाता है कि दोनों दलों के बीच वैचारिक समानता है। लेकिन इस बार कोई भी झुकने को तैयार नहीं है।
इस मामले में हाल ही जद-यू के प्रवक्ता केसी त्यागी ने एक लेख लिखा है। त्यागी ने लिखा है कि भाजपा ने 1977 के जनता पार्टी के प्रयोग के समय से ही गठबंधन में हमेशा समझौता किया है। चाहे चौधरी देवीलाल का लोक दल हो या वीपी सिंह का जनता दल, सभी ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन सत्ता में भागीदारी करने के मामले में ये दल हमेशा से मनमानी करते रहे। वीपी सिंह की तो यह हालत थी कि वे 1989 के आम चुनाव में जब प्रत्याशियों को पक्ष में सभा लेने जाते थे तो उनकी सभा के पहले मंच के आस-पास से भाजपा के झंडे हटाए जाते थे। इस बात के निर्देश स्वयं वीपी सिंह ने दिए थे। हालांकि भाजपा के सहयोग के बिना वे कभी भी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे।
यही हाल हरियाणा में भी हुए थे। 1987 विधानसभा चुनाव में देवीलाल ने भाजपा की सीटें 22 से घटाकर 17 कर दी और गठबंधन को बहुमत मिलने पर सीपीआई नेता हरकिशन सिंह सुरजीत ने देवीलाल के मित्र प्रकाश सिंह बादल के जरिए देवीलाल को भाजपा को सरकार में न शामिल करने का दबाव बनाया। भाजपा की ओर से सरकार के गठन की बात करने की जिम्मेदारी राजमाता विजयाराजे सिंधिया के पास थी। देवीलाल राजमाता का बहुत सम्मान करते थे। इसके चलते वे भाजपा को सत्ता से बाहर नहीं रख पाए। गठबंधन में भाजपा के नुकसान उठाने के ऐसे कईं किस्से हैं।
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