आपके पौरुष पर सवाल है कमलेश तिवारी की हत्या

आपके पौरुष पर सवाल है कमलेश तिवारी की हत्या

कमलेश तिवारी की हत्या का समाचार सुनकर बुरा लगा लेकिन आश्चर्य नहीं हुआ। संभवत: कमलेश तिवारी स्वयं भी यदि अपनी हत्या का समाचार सुनते तो आश्चर्यचकित नहीं होते क्योंकि उन्होंने कईं बार इसकी आशंका जताई थी। राजनीति में न होने के बावजूद मुझे इस बात का अंदेशा हमेशा से था। क्योंकि मुझे सत्ता की भी समझ है और शांतिप्रिय लोगों की भी। हालांकि उत्तर प्रदेश में योगी राज आने के बाद लगता था कि हिंदू और हिंदुत्व सुरक्षित होगा। लेकिन अब तक परिणाम अपेक्षा के विपरित रहा। कमलेश तिवारी ने जो किया वो सही था गलत इसकी बहस भी चलती रहेगी लेकिन ये भी देखना होगा कि बहस करने वाले कौन हैं? स्व. तिवारी के बयान के बाद जो ‘शांतिप्रिय हंगामे” देश में हुए वो सबने देखे थे। लेकिन तिवारी की हत्या के बाद विरोध केवल फेसबुक और ट्विटर तक ही सीमित रहा है। यह प्रश्न यदि एक आम हिंदू स्वयं ने नहीं पूछता तो कम से कम उस हिंदू वादी ने अवश्य पूछना चाहिए जिसने सोशल मीडिया पर स्वयं को हिंदू वादी घोषित किया हुआ है और उस व्यक्ति की तो कॉलर पकड़कर पूछना चाहिए जिसने आप से हिंदुत्व के नाम से वोट मांगे थे।


2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही देश में माहौल बदला है लेकिन अब भी हिंदू इससे मेरा क्या बिगड़ता है कि सोच से आगे नहीं आ पाया है। और हिंदुवादी, जो पहले जनसमर्थन मिले या मिले सड़क पर होते थे, वे भी अब चुप हो गए हैं। ऐसे में सबसे बड़ा संकट ये हैं कि हिन्दुओं के लिए आ‌वाज कौन उठाएगा? कमलेश तिवारी और उन जैसे अनेक व्यक्ति अपनी सीमाओं में, इस कौन के उत्तर थे। इसके चलते इन जैसे लोगों की हिंदू समाज के आवश्यकता हमेशा रहेगी। फिर भले ही ये लोग किसी भी संगठन से जुड़े रहे हों। यह भी सही है कि कमलेश तिवारी उपेक्षित थे।

पहले हिन्दूवादी किसी भी संगठन या स्थान उससे स्वीकार्य माना जाता था लेकिन अब विचार की तुलना में संगठन महत्वपूर्ण हो गया है। ऐसे लोग भी संगठन में आकर हिन्दूवादी घोषित हो गए हैं जो कि हमेशा से सत्ता के साथ कदमताल करते दिखते हैं। इस मानसिकता के चलते कमलेश तिवारी भी प्रखर हिन्दूवादी विचार के बाद भी उपेक्षित ही रहे। लेकिन उनकी हत्या हिन्दुवादियों को एक चुनौती और अवसर दोनों है। परिवार का दायरा बढ़ाइए और उसमें हर हिन्दुवादी को सहर्ष स्वीकार कीजिए फिर भले ही वो किसी भी संगठन का क्यों न हों। हत्यारों से कम से कम इतना तो सीखा ही जा सकता है। कमलेश तिवारी की हत्या की बदला खुद को बदलकर लें। यही श्रद्धांजलि होगी और यही समय की मांग है कि हम हर हिन्दूवादी के पक्ष में खड़े हों। (एकात्म भारत)

ekatma

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