हमारे अटल जी…
उनके स्वरों में पराजय को भी विजय के ऐसे गगन भेदी विश्वास में बदलने की ताकत थी कि जीतने वाला ही हार मान बैठे..
सुचेन्द्र मिश्रा
अटलजी के बारे में ये बातें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहीं थींं। उनके चाहने वालों ने उन्हें कईं बार हारते देखा लेकिन निराश कभी नहीं देखा क्योंकि उन्होंने जितने दिल जीते उसका हिसाब लगाना भी संभव नहीं है। आज उनका 95वां जन्मदिवस है। यदि काल उन्हें कुछ समय और देता वे धारा 370 और राम मंदिर जैसे मुद्दों का समाधान देख सकते थे। ये वे मुद्दे हैं जिनके लिए अटल जी ने अपना पूरा जीवन लगा दिया।
वे कवि थे इसलिए संवेदनशील थे, लेकिन उनकी संवेदनाएं समय को सटीक तरीके से समझती थीं। जहां लता मंगेशकर का गीत ए मेरे वतन के लोगों जरा आंखों में भर लो पानी … को सुनकर नेहरू के रो देने के किस्से सर्वव्यापी हैं वहीं अटलजी ने 1962 में एक समारोह में लता जी से ही इस गीत को सुनने के बाद उनके पास जाकर उनकी प्रशंसा की और कहा था कि ये आंख में पानी भरने का समय नहीं बल्कि अंगारे भरने का समय है।
मैं पत्रकार हूं इसलिए अटलजी का पत्रकार बनने का किस्सा भी मेरे लिए खास है। बताते हैं कि लखनऊ में संघ की बैठक में भाऊराव देवरस जी ने गुरुजी का संकल्प बताया कि गुरुजी चाहते थे लखनऊ से समाचार पत्र निकाला जाए। बैठक में अटलजी, राजीवलोचन और दीनदयाल उपाध्याय जी उपस्थित थे। मासिक समाचार पत्र का दायित्व दीनदयाल उपाध्याय को सौंपा गया। उन्होंने संपादक के रूप में अटल जी को चुना। संपादक मंडल में राजीव लोचन अग्निहोत्री भी लिए गए। अमीनाबाद की मारवाड़ी गली में समाचार पत्र का कार्यालय खोला गया। एक चटाई पर सफेद चादर, एक टेबल, कागज, कलाम और दवात की पूंजी के सहारे। इसके अलावा साथ में कुछ था तो ध्येय और निष्ठा अटलजी, दीनदयालजी और साथी। पहले अंक की 3 हज़ार प्रतियां छपीं, संपादकीय दीनदयाल जी ने लिखा। लेकिन पहले पन्ने पर अटलजी थे और उनकी कविता घर-घर में लोगों की ज़ुबान पर। इस तरह से राष्ट्रधर्म का पहला अंक सामने आया और साथ ही पत्रकार अटलजी।
अटलजी की नेतृत्व क्षमता को भाजपा और जनसंघ ने तो कईं बार देखा लेकिन देश ने पोखरन के समय उनकी नेतृत्व क्षमता को देखा। जब उन्होंंने परमाणु विस्फोट को देश के लिए आवश्यक मानते हुए। किसी भी प्रतिबंध की चिंता नहीं की। इस मामले को याद करते हुए नरेन्द्र मोदी ने लिखा है कि इंडिया फर्स्ट –भारत प्रथम, ये मंत्र वाक्य उनका जीवन ध्येय था। पोखरण देश के लिए जरूरी था तो चिंता नहीं की प्रतिबंधों और आलोचनाओं की, क्योंकि देश प्रथम था।सुपर कंप्यूटर नहीं मिले, क्रायोजेनिक इंजन नहीं मिले तो परवाह नहीं, हम खुद बनाएंगे, हम खुद अपने दम पर अपनी प्रतिभा और वैज्ञानिक कुशलता के बल पर असंभव दिखने वाले कार्य संभव कर दिखाएंगे। और ऐसा किया भी।दुनिया को चकित किया। सिर्फ एक ताकत उनके भीतर काम करती थी- देश प्रथम की जिद।
वे शिक्षक पिता की संतान थे। इस नाते से बच्चों को शिक्षा की उपलब्धता और उसमें आने वाली कठनाईयों से भी परिचित थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने शिक्षा के अधिकार का कानून बनाया। इसमें 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों को शिक्षा का मौलिक अधिकार दिया। शिक्षा के अधिकार ने न जाने कितने ही बच्चों को गरीबी और शोषण के दुष्चक्र से बाहर निकाला होगा। कितने ही बच्चे इसके चलते सम्मानजनक जीवन जी रहे होंगे। ये ऐसी उपलब्धि जिसकी राजनीतिक क्षेत्रों में कभी चर्चा नहीं हुई। लेकिन यह एक प्रधानमंत्री के मन में बैठा गरीब बच्चा ही था जिसने शिक्षा के अधिकार को जन्म दिया। उनके बारे में कहा जाता है कि वे जितनी ऊंचाई को छूते गए उतना ही जमीन से जुड़ते गए।
केवल भावुकता ही नहीं प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने कठिन समय पर देश का नेतृत्व किया। जब वे सत्ता में आए थे तो एशियाई देश आर्थिक मंदी का सामना कर रहे थे। साल 2000 और 2002 में उनके कार्यकाल में देश को जबरदस्त सूखे का सामना करना पड़ा। इन वजहों से जीडीपी ग्रोथ बीच-बीच में कम होती रही लेकिन जब 2004 में उनका कार्यकाल समाप्त हुआ तो देश की विकास दर आठ प्रतिशत थी। स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर ने इकनॉमिक टाइम्स में लिखे अपने लेख में कहा है कि अटलजी ने ही 8 प्रतिशत की जीडीपी ग्रोथ हासिल करके इस धारणा को गलत ठहराया कि तेज विकास सिर्फ तानाशाही व्यवस्था में ही संभव है।
अटल जी ने ही ‘सरकारी सफेद हाथियों’ (घाटे वाली बड़ी कंपनियों) के निजीकरण का दमखम था। उनके निधन के पश्चात एक ऐसी घटना भी सामने आई जिसमें भाजपा छोड़कर कांग्रेस में चले गए जबलपुर के एक नेता ने अटलजी की पुण्यतिथि पर बड़ा आयोजन किया। वो कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर भी अटलजी से जुड़ा हुआ है। क्या राजनीति में ऐसे व्यक्तित्व होते हैं जिन्हें इस तरह से याद किया जाए? तो जवाब में बस अटलजी का नाम ही सामने आता है। आज लखनऊ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लखनऊ आएंगे। वे यहां लोकभवन में वाजपेयी की 25 फीट ऊंची अष्टधातु की प्रतिमा का अनवारण करेंगे।
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भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को जन्म दिवस पर सत् सत् नमन् 🙏