बिना मोबाईल, इंटरनेट का मौन लॉक डाउन सदियों से कर रहे हैं बाली के हिन्दू
लॉकडाउन कोरोना के कारण हो रहा है तो न्येपी का यह लॉकडाउन इस मान्यता के साथ होता है कि वर्ष के अंत में यदि कोई दानव द्वीप पर आए तो वह द्वीप का निर्जन समझकर लौट जाए। ऐसा ही कुछ कोरोना के साथ भी है। यदि हम सड़क पर नहीं निकलेंगे तो कोरोना भी लौट जाएगा।
जहां हमने कभी लॉकडाउन की कल्पना भी नहीं की थी वहीं इंडोनेशिया के बाली द्वीप के हिन्दू सैकंड़ों वर्षों से लॉकडाउन का पालन करते आ रहे हैं। ये लॉकडाउन भी ऐसा कि हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। इस दौरान सभी घर में रहते हैं और एक-दूसरे से बात भी नहीं करते यानी कि मौन रहते हैं। यहां तक कि टीवी तो छोड़िए लैपटॉप, मोबाईल और इंटरनेट का भी उपयोग नहीं होता है। न तो आग जलाई जाती है और न ही बिजली जलाई जाती है। हाल ये है कि इस दौरान बाली का हवाई अड्डा भी बंद रहता है। अपने आप से पूछिए कि क्या आप बिना मोबाईल, इंटरनेट और बिजली के एक दिन भी रह सकेंगे?
दरअसल ये बाली के हिन्दुओं द्वारा मनाया जाने वाला न्येपी त्यौहार है। जो कि हिन्दू नव वर्ष के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। ये तीन दिन का उत्सव है। इस दिन से यहां शक संवत् प्रारंभ होता है। इसकी शुरुआत शक राजवंश ने 78 ईस्वी में की थी। कनिष्क के काल में ही हिन्दू धर्म का प्रचार बाली में हुआ था।
न्येपी वाले दिन कुछ लोग उपवास भी रखते हैं। वे अपने फोन बंद कर देते हैं । बहुत ज़रूरी होने पर फुसफुसाने के अलावा कोई बात नहीं करते। यहां तक कि कुत्ते और मुर्गे भी सामान्य दिनों की तुलना में शांत रहते हैं।
स्थानीय पुलिस सड़कों पर और समुद्र तटों पर गश्त करती है ताकि कोई व्यक्ति नियम न तोड़े। इस परंपरा का इतिहास देखेंगे तो कुछ सीमा तक ये आपको कोरोना के कहर से मिलता जुलता लगेगा। अभी लॉकडाउन कोरोना के कारण हो रहा है तो न्येपी का यह लॉकडाउन इस मान्यता के साथ होता है कि वर्ष के अंत में यदि कोई दानव द्वीप पर आए तो वह द्वीप का निर्जन समझकर लौट जाए। ऐसा ही कुछ कोरोना के साथ भी है। यदि हम सड़क पर नहीं निकलेंगे तो कोरोना भी लौट जाएगा। इस तरह से आज पूरा मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया न्येपी ही मना रहा है।
महीनों पहले से लोग न्येपी की तैयारी में बांस और काग़ज़ की लुगदी से दानव के विशाल पुतले बनाने में लग जाते हैं। इन्हें ओगोह-ओगोह कहा जाता है। नए साल से एक दिन पहले भव्य समारोह में गेमेलन बैंड के साथ उन पुतलों की परेड कराई जाती है।
बाली के लोग पेनग्रुपुकन की रस्म भी निभाते हैं, जिसमें नारियल के सूखे पत्तों के जलते हुए बंडल को मंदिरों और इमारतों की नींव में रगड़ा जाता है और फटे हुए बांस के डंडे पटककर दानव को भागने के लिए कहा जाता है। बाली के लोग इस समय का उपयोग पिछले साल के बारे में सोचने और भविष्य के लक्ष्य निर्धारित करने के लिए भी करते हैं। उनका मानना है कि मौन ध्यान लगाने का सबसे अच्छा तरीक़ा है। एक दिन के लिए ही सही, घर में परिवार के साथ समय बिताने से ख़ुशी मिलती है। बीते हुए समय के बारे में चिंतन भविष्य में हमें और अधिक सक्षम बनने में मदद करता है।
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इन दिनों इसका महत्व और बढ़ गया है क्योंकि आजकल के समय लोग आम दिनों में बहुत व्यस्त रहते हैं और उन्हें इस तरह से घर पर समय बिताने का अवसर नहीं मिलता है। न्येपी में उन्हें पूरे दिन परिवार के साथ बिताने का अवसर देता है। ध्यान भटकाने के लिए न टीवी होता है न ही इंटरनेट।
बाली में सोशल डिस्टेंसिंग के उपाय लागू हैं। कोरोना वायरस के कारण इस साल न्येपी को एक दिन के लिए बढ़ा दिया गया था। मौन दिवस के फ़ायदे भी बढ़े हैं। न्येपी का आयोजन हमारे वर्ष प्रतिपदा के साथ ही होता है। न्येपी का पर्यावरण पर प्रभाव का भी अध्ययन किया गया है। इंडोनेशिया के मौसम विज्ञान, जलवायु विज्ञान और भू-भौतिकी एजेंसी के 2015 के अध्ययन में पाया गया कि मौन दिवस के दिन बाली के शहरी क्षेत्र में हवा में धूलकण 73 से 78 प्रतिशत तक कम हो जाते हैं। जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल के विश्लेषण के अनुसार न्येपी दिवस पर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 33 फीसदी कम हो जाता है।
अब इंडोनेशिया में भी चर्चा है कि यदि पूरे देश में न्योपी का आयोजन करें तो इसका प्रभाव और भी अच्छा होगा। न केवल पूरे देश को एक ब्रेक मिलेगा बल्कि पर्यावरण को भी कार्बन से मुक्त होने का अवसर मिलेगा। लॉकडाउन सदियों से चली आ रही संस्कृति से कुछ सबक लेने का अवसर है।
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