20 लाख करोड़ का पैकेज है श्रमिकों की परेशानी का स्थाई हल

20 लाख करोड़ का पैकेज है श्रमिकों की परेशानी का स्थाई हल

बहुत से नागरिक श्रमिकों के पलायन को देखकर व्यथित हैं और इस मामले में सरकार की चुप्पी पर प्रश्न उठा रहे हैं। श्रमिकों का पलायन देखकर व्यथित होना सही भी है, क्योंकि यह मानव की पहली निशानी है कि वो दूसरों को परेशानी में देखकर उसको स्वयं अनुभव करे। ऐसे लोगों में बड़ी संख्या उन लोगों की भी है, जो कि वर्तमान सरकार के समर्थक हैं।


मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीस लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा की है। यह पैकेज समग्र देश के लिए है। लेकिन इसका केन्द्र छोटे उद्योग हैं। प्रधानमंत्री ने इसके साथ ही लोकल पर वोकल होने की भी बात कही है।


कुछ लोगों के लिए यह भारतीय जनता पार्टी का स्वदेशी अपनाओं विचार की और लौटना हो सकता है, लेकिन यदि आप इसे ध्यान से देखेंगे तो यह उससे भी आगे की बात है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह स्वदेशी का हाईपर लोकेलाईजेशन है। लोकल के लिए वोकल की टैगलाइन को विस्तार देते हुए प्रधानमंत्री ने समझाया है कि अब देशवासियों को स्थानीय ब्रांड्स को ग्लोबल ब्राड्स में बदलने के लिए आगे आना चाहिए।


अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में यह मूल मंत्र अब तक किसी के विचार में भी नहीं आया है। यदि देशवासियों ने इसे क्रियान्वित करने में सही योगदान दिया तो हमारे पास दर्जनों नहीं सैंकड़ों ग्लोबल ब्रांड होंगे। यही हमारे आत्मनिर्भर होेने की कसौटी है।


कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन वैश्विक अर्थव्यवस्था पर अपना प्रभाव डाल रहे हैं और हम भी इससे अछूते नहीं हैं। ऐसे समय देश की अर्थव्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन लाने के बारे में सोचना बहुत साहसिक निर्णय है। इसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। हालांकि देश ही नहीं दुनिया भी नरेन्द्र मोदी को साहसिक और कठोर निर्णय लेने के लिए जानती है। लोकप्रियता पर टिकी सत्ता में ऐसा करने वाले वे बिरले नेता हैं। यही बात उन्हें अलग बनाती है।


अब आप कहेंगे कि इस पैकेज में श्रमिक कहां हैं? प्रधानमंत्रीजी ने अपने पूरे भाषण में उनका उल्लेख ही नहीं किया। तो इस बारे में कुछ कहने के पहले हम थोड़ा इस पलायन के बारे में चर्चा कर लें तो ठीक होगा। कोरोना जैसा संकट कभी भी किसी ने न देखा है, न सोचा है। इसके चलते इसके बारे में निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता है कि बचाव का सही तरीका क्या है? आज हमारे ग्रामीण क्षेत्र इस महामारी से बहुत सीमा तक मुक्त हैं। यह बहुत राहत की बात है। सोचिए यदि सरकार आगे रहकर इन श्रमिकों को गांव भेजने की व्यवस्था करती और इस तरह से कोरोना ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना फैल जाता तो भी उसी की जिम्मेदारी बनती। ऐसे में यह निर्णय लेना सरल नहीं था।

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श्रमिकों का पलायन लंबे समय से देश की बड़ी समस्या रहा है। बड़े उद्योग इस समस्या का समाधान नहीं दे सके हैं। इसी के चलते सरकार ने अब राह बदलने की निर्णय किया है। सरकार को पता है कि इतना लंबा रास्ता पैदल तय करने के बाद ये श्रमिक अगले कुछ वर्षों तक काम करने के लिए अपने गांव और प्रदेश नहीं छोड़ने वाले हैं। लेकिन गांव में इनके लिए स्थाई रोजगार के अवसर भी नहीं हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ये 20 लाख करोड़ का पैकेेज लेकर आई है। और प्रधानमंत्री की मानें तो इसमें लघु, छोटे और कुटीर उद्योगों का विशेष ध्यान रखा गया है। कुल मिलाकर ये लोकल पर वोकल इन श्रमिकों को स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराने की तैयारी है।

अब सरकार गांव में छोटे उद्योग लगें, इसका प्रयास करेगी। इससे न केवल शहरीकरण का दबाव कम होगा बल्कि इससे देश का समेकित विकास भी संभव होगा। गांव में जीवन निर्वाह की लागत कम होती है। इससे उद्योगों को भी शहरों की तुलना में अपेक्षाकृत कम लागत पर श्रम सुलभ होगा। इससे इन उद्यमियों को दूरस्थ स्थान पर जाने से जो लागत में बढ़ोतरी होगी, उसकी भरपाई भी हो सकेगी।

यदि मैं पांडवों की तरफ से खेलता तो पासे मेरी सुनते या शकुनि की

दुनिया को औद्योगिकरण का पाठ पढ़ाने वाले कईं यूरोपीयन देश भी इसका अनुसरण करते हैं। हालांकि अब तक हम यह मानकर इस मॉडल को अनदेखा करते रहे हैं कि एक बड़ी जनसंख्या को आवश्यक सामग्री उपलब्ध हो सके, यह सुनिश्चित किया जाए। लेकिन समय बदलने के संकेत मिल गए हैं। इसे सफल बनाने में सबसे बड़ी भूमिका प्रदेश सरकार और उनके अधिकारियों की होगी। ताकि सही स्थान पर सही उद्योग लगें। नहीं तो धार जिले में औद्योगिकरण को बढ़ावा देने के लिए पीथमपुर का तो विकास हुआ लेकिन धार जिले का पिछड़ापन उससे दूर नहीं हुआ। इसी तरह से टमाटर का बंपर उत्पादन खरगौन में होता है। वहां का टमाटर पाकिस्तान तक जाता है लेकिन कैचप की फेक्ट्री पीथमपुर में लगी हुई है।

इस तरह क अव्यवहारिक निर्णयों से बचे तो इसे भारतीय अर्थव्यवस्था में कोरोना क्रांति के नाम से याद किया जाएगा। एक ऐसी चुनौती के रूप में भी, जिसे देश ने अवसर मे बदल दिया और फिर श्रमिकों को रोजगार के लिए सैकंड़ों किलोमीटर पलायन करने की आवश्यकता नहीं होगी।
प्रधानमंत्री का आह्वान एक तरफा नहीं हैं। उन्होंने नागरिकों से स्थानीय सामान खरीदने की बात कह कर इन क्षेत्रों में लगने वाली इकाईयों को स्थानीय बाजार उपलब्ध कराने की तैयारी भी की है। यानी स्थानीय उत्पाद और स्थानीय बाजार।
इस तरह से ये पहल न केवल श्रमिक, असंतुलित विकास बल्कि नक्सलवाद जैसी कईं राजनीतिक समस्याओं के निराकरण में भी कारगर सिद्ध होगी।

सुचेन्द्र मिश्रा

ekatma

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