विश्व हिन्दू परिषद की जीवन रेखा है अयोध्या और राम लला
29 अगस्त, 1964 को मुंबई के संदीपनि आश्रम में जन्मी विश्व हिंदू परिषद ने लगभग 20 वर्ष बाद 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित अपनी पहली धर्म संसद में अयोध्या, मथुरा और काशी के धर्मस्थलों को हिंदुओं को सौंपने का प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव को ओंकार भावे ने धर्मसंसद में रखा था। इसके बाद 21 जुलाई, 1984 को अयोध्या के वाल्मीकि भवन में बैठक कर विहिप ने रामजन्मभूमि यज्ञ समिति का गठन किया। इसका अध्यक्ष उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ को व महामंत्री दाऊदयाल खन्ना को बनाया गया, जबकि महंत रामचंद्रदास परमहंस व महंत नृत्यगोपाल दास उपाध्यक्ष चुने गए। उसी वर्ष सात अक्टूबर काे विहिप ने सरयू तट पर रामजन्मभूमि मुक्ति का संकल्प लिया और अगले दिन इस मसले पर जनजागरण के उद्देश्य से एक पदयात्रा शुरू की।
यात्रा 14 अक्टूबर को लखनऊ पहुंची, जहां बेगम हजरत महल पार्क में हुई विशाल सभा में विहिप के संस्थापक महासचिव अशोक सिंहल ने प्रस्ताव रखा कि रामजन्मभूमि का स्वामित्व अविलंब जगद्गगुरु रामानंदाचार्य को सौंप दिया जाय। तब तक श्री राम जन्मभूमि न्यास का गठन नहीं हुआ था। यह मंदिर निर्माण की मांग को लेकर पहली जनसभा थी। 1992 में सिंहल अयोध्या न पहुंचे इसके लिए प्रयागराज से वहां जाने वाले रास्ते की बैरीकेटिंग कर दी गई थी लेकिन, सिंहल रुके नहीं। वह विहिप नेता राम नायक पांडेय के साथ मुख्य मार्ग की बजाय मोटर साइकिल से विभिन्न गांव के कच्चे-पक्के रास्ते से होते हुए अयोध्या पहुंच गए।
राम मंदिर के पक्ष देश में माहौल बनाने के लिए आडवाणी ने 1990 में सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ यात्रा निकाली थी। इसी यात्रा से अयोध्या आंदोलन को धार मिली थी। देश के कई हिस्सों में ‘राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ का नारा गूंज रहा था। आडवाणी अयोध्या आंदोलन से भाजपा के सबसे बड़े हिंदुत्व का चेहरा बन गए थे। विध्वंस के दौरान आडवणी अयोध्या में मौजूद थे। विध्वंस के लिए वे षड्यंत्र के आरोपी हैं और मामला कोर्ट में है।राम मंदिर आंदोलन से जुड़ा एक अहम नाम मुरली मनोहर जोशी है। पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के बाद मंदिर आंदोलन में जोशी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। छह दिसंबर को जब विवादित ढांचा गिराया गया तो जोशी भी अयोध्या में थे। जोशी ने अपने बेबाक भाषणों से आंदोलन को काफी तेज किया था।
राम मंदिर आदोलन को लेकर विनय कटियार के तेवर शुरू से सख्त थे और आज भी वैसे ही हैं। कटियार कट्टर हिंदुत्व का चेहरा माने जाते थे। विध्वंस के दौरान विनय कटियार अयोध्या में मौजूद थे और वो इस मामले में आरोपी हैं। वो मौजूदा समय में भाजपा के महज सदस्य हैं और न पार्टी में उनकी भूमिका है और न ही सरकार में। उमा भारती को राजनीतिक पहचान अयोध्या आंदोलन से मिली। विध्वंस के दौरान उमा भारती अयोध्या में मौजूद रहीं और वह भी इस मामले में आरोपी हैं। उनके अलावा महंत रामचंद्र दास, गिरीराज किशोर, साध्वी ऋतंबरा जैसे अनेक नाम इस आंदोलन में साथ चले। इसमें कोठारी बंंधु भी थे। इस तरह से अनेक कारसेवक भी इस आंदोलन में शहीद हुए।
21 से 30 अक्टूबर 1990 तक अयोध्या में लाखों की संख्या में कारसेवक जुट चुके थे। सब विवादित स्थल की ओर जाने की तैयारी में थे। विवादित स्थल के चारों तरफ भारी सुरक्षा थी। अयोध्या में लगे कर्फ्यू के बीच सुबह करीब 10 बजे चारों दिशाओं से बाबरी मस्जिद की ओर कारसेवक बढ़ने लगे। इनका नेतृत्व कर रहे थे अशोक सिंघल, उमा भारती, विनय कटियार जैसे नेता। विवादित स्थल के चारों तरफ और अयोध्या शहर में यूपी पीएसी के करीब 30 हजार जवान तैनात किए गए थे। इसी दिन बाबरी मस्जिद के गुंबद पर शरद (20 साल) और रामकुमार कोठारी (23 साल) नाम के भाइयों ने भगवा झंडा फहराया। दोनों भाईयों को पुलिस ने गोली मार दी थी।
1 Comment
Comments are closed.