वो कांग्रेसी कानून जो इसलिए लाया गया ताकि मथुरा और काशी हिन्दुओं को कभी न मिले
अब भी लागू है धर्मस्थल विशेष प्रावधान अधिनियम 1991,राम मंदिर आंदोलन से घबरा कर कांग्रेस लाई थी कानून
पूरा देश राम मय है। यहां तक राम के अस्तित्व को काल्पनिक बताने वाले भी जय श्री राम के जयघोष लगा रहे हैं और 1986 की याद दिला रहे हैं कि अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन राजीव गांधी ने किया था। इसलिए राम मंदिर निर्माण में हमारा योगदान भी है। लेकिन यह बताते हुए वे आजाद भारत के उस काले कानून के बारे में बताना भूल जाते हैं जिसका नाम पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम 1991 है और जो केवल इसलिए लाया गया था ताकि हिन्दू उन मंदिरों पर दावा न कर सके जिन्हें तोड़कर मस्जिद बना दी गई है।
मथुरा -काशी के लिए लाया गया था कानून
याद रखें मथुरा और काशी इसी तरह के मामले हैं, जिनको ध्यान में रखकर यह कानून लाया गया था। ताकि इन्हें लेकर हिन्दू कोई दावा न कर सकें। यह अधिनियम सितंबर 1991 में लाया गया था। उस समय राम मंदिर आंदोलन जोरों पर था और देश में कांग्रेस की सरकार थी। नरसिम्हाराव देश के प्रधानमंत्री थे। कांग्रेस राम मंदिर आंदोलन से परेशान थी। उसे लगता था कि यह आंदोलन उसे सत्ता से बाहर कर देगा। इसे देखते हुए नरसिम्हाराव की सरकार ने पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम 1991 लागू किया।
इस अधिनियम के प्रावधान अयोध्या के श्री राम जन्मभूमि को छोड़कर सभी धर्मस्थलों पर लागू होते हैं। (यह कानून आज भी प्रचलित हैं।) इसमें व्यवस्था है कि धर्मस्थलों को 15 अगस्त 1947 की स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जा सकेगा। यानी कि यदि 15 अगस्त 1947 को कोई मंदिर यदि मस्जिद के रूप में मौजूद था तो फिर उसे कभी भी मंदिर नहीं बनाया जा सकेगा भले ही यह साबित हो जाए कि वह मंदिर था।
इस अधिनियम का उद्देश्य था कि भविष्य में राम मंदिर की तरह का कोई अन्य आंदोलन न खड़ा हो पाए। इसके साथ ही इससे उन मस्जिदों को भी सुरक्षित कर दिया गया जिन्हें मंदिर तोड़कर बनाया गया था।
लेकिन कश्मीर में छूट
यह कानून जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होता है। यानी कि यदि कश्मीर में कोई मंदिर तोड़ा गया है तो यह कानून उसे 1947 के पहले की स्थिति में नहीं लाता है। जबकि कश्मीर में 1989 के कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद बड़े पैमाने पर हिन्दू मंदिरों और प्रतीकों को तोड़ा गया है। इनमें से कईं मंदिरों को मस्जिद और मजार में परिवर्तित कर दिया गया है। इनको भी 15 अगस्त 1947 की स्थिति में लाया जाए तो ये सब मंदिर हो जाएंगे। लेकिन यह कानून कश्मीर में लागू नहीं होता है।
पुजारी संघ ने दी है कोर्ट में चुनौती
इस कानून को हिन्दू पुजारियों के महासंघ हिन्दू विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है। बाद में इस मामले में राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। यानी इस अधिनियम को रद्द कराने की दिशा में काम शुरू हो गया है और यदि हिन्दुओं को मथुरा और काशी भी चाहिए तो इस अधियनियम का रद्द होना आवश्यक है। इसके पहले बाबरी के पक्ष ने राम मंदिर के मामले में भी इस कानून को हथियार बनाने का प्रयास किया था लेकिन उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली थी।
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